tag:blogger.com,1999:blog-6989359645096836422.post8500692165620366461..comments2024-01-05T14:16:17.963+05:30Comments on बिखरे आखर .: दैनिक विराट वैभव (दिल्ली ) में प्रकाशित मेरा एक आलेख ...अजय कुमार झाhttp://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-6989359645096836422.post-85967450344321328322010-10-07T23:06:21.720+05:302010-10-07T23:06:21.720+05:30बहुत ज़रूरी विषय । मुझे कुमार विकल की एक कविता याद...बहुत ज़रूरी विषय । मुझे कुमार विकल की एक कविता याद आई - यह जो सड़क पर खून बह रहा है / इसे सूंघकर देखो / यह हिन्दू का है या मुसलमान का / सिख का या ईसाइ का / किसी बहन का या भाई का / सड़क पर पड़े टिफिन कैरियर से जो रोटी की गन्ध आ रही है ? वह किस जाति की है " यह एक दुर्घटना का दृश्य है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6989359645096836422.post-35391782433751010702010-10-07T22:37:46.163+05:302010-10-07T22:37:46.163+05:30... पुराने खजाने से निकलते हुये हीरे-ज्वाहारात, बध...... पुराने खजाने से निकलते हुये हीरे-ज्वाहारात, बधाई!कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.com