प्रचार खिडकी

रविवार, 29 मार्च 2009

समाज को निगलता अपराध (एक प्रकाशित आलेख )

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शुक्रवार, 20 मार्च 2009

ये कैसा ,किसका चुनाव है ?

चारों तरफ़ एक अजीब,
हंगामा है बरपा,
मैं हर बार की तरह,
अब भी नहीं समझा,
आख़िर ये कैसा,
किसका चुनाव है ?

कौन साथ है किसके,
कौन किसके ख़िलाफ़ है,
कोई सोच विचार में,
कोई है मंझधार में,
दलदल में धंसा हुआ भी,
ख़ुद को कह रहा पाक साफ़ है॥

अब तो संदेह है , मुझे,
कि हम उन्हें चुनते हैं,
यूँ असलियत कुछ और है,
हर बार मछेरे ,
अलग अलग रंगों की डोरियों से,
उन्हीं मछलियों के लिए,
नए जाल बुनते हैं...

और आप हम सब उस जाल में , कभी अलग अलग, तो कभी एक साथ फंसते रहते हैं, क्यूँ है न ?
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