प्रचार खिडकी

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

मां तेरे जाने के बाद ......फ़िर अगले जनम का इंतज़ार है मुझे ...




मां तेरे जाने के बाद ,
मुझे "मां "कहना भी ,
क्यों अजीब लगता है ?
जैसे ही,
करते हैं कोशिश ,
ये होंठ ,
एक कतरा आसूं का ,
बैठा आखों के करीब लगता है ॥॥
मां ,अब जाता हूं ,
जो घर कभी ,
मुझे मालूम है कि ,
अब मुझे,
हर स्टेशन से फ़ोन करके ,
ये नहीं बताना पडता कि ,
मैं पहुंचा कहां हूं ,
मुझे पता है कि ,
घर पर अब ,
सबको ये मालूम है कि ,
खाना तो मैं ,
सफ़र में ही खा लूंगा ,
और कोई मेरा ,
अब देर रात तक इंतज़ार नहीं करता ॥॥
मां , तेरे जाने के बाद ,
अक्सर ही ,
मुझे अकले बैठे पिताजी ,
याद दिलाते हैं कि ,
कौन सी ,वो जगह थी ,
जो खाली हो गई है ॥
मां , देख न तू ,
हुई कितनी निर्मोही ,
छोड गई ढेर सारे ,
भगवान मेरे लिए ,
मगर एक अकेली ,
तू ही नहीं रही,पास मेरे ॥॥
मां , अब तो मुझे ,
उम्र ये बहुत भारी लगती है ,
अब तो मुझे फ़िर से ,
इक अगले जनम
का इंतज़ार है ...
मां मिलेगी न
अगले जनम भी .
मां बनके .......मिलेगी न ......मिलेगी न ...????????



बुधवार, 17 नवंबर 2010

मेरा कुछ सामान खो गया है ....तलाशने वाले को मेरी तरफ़ से खुशियों का एक कतरा दिया जाएगा ...




आप सोच रहे होंगे कि मैंने ये कौन सी मुनादी करवा दी ?? क्या करूं जब मेरे लाख कोशिश करने के बाद भी मुझे मेरी ये खोई हुई चीजें नहीं मिल पा रही हैं तो फ़िर आप दोस्त किस काम के जी यदि आप मेरी ये चीज़ें मुझे ढूंढ कर न दे सकें तो । आज सुबह सुबह एक कौआ मुंडेर पर आकर बैठ गया हालांकि अब राजधानी में कौव्वे भी आपको राष्ट्रमंडल खेल आदि जैसे बडे आयोजनों की तरह ही कभी कभी दिखाई देते हैं ।मगर यकायक ही मुझे अपनी एक सबसे प्रिय पक्षी का ध्यान आ गया जिसके साथ मैं बचपन में खूब खेला करता था । जी हां वही छोटी सी शैतान सी चंचल सी अपनी गोरैया ...ओह जाने कितने बरस बीत गए अब तो उसे देखे हुए ...मन दुख और वितृष्णा से भर गया ...मैंने सोचा कि चलो कोई बात नहीं मैना को ही तलाशते हैं , मगर अफ़सोस कि वो भी नहीं दिखी कहीं



इसके बाद सोचा घर से बाहर निकला जाए और आसपास के बाग बगीचों में तितली को ही ढूंढा जाए और देखा जाए कि तितली कितनी बदली है । अजी मिलती तो देख भी लेते ........मगर अफ़सोस कि वो भी कहीं नहीं दिखी । हद है यार मैं थक हार कर वापस घर आ गया । फ़िर जेहन में एक ख्याल कौंधा कि देखूं तो सही कि कौन कौन सी वो चीज़ें थीं जिन्हें देखे मुझे एक अरसा हो गया है






पहला ख्याल आया वही पुराने ट्रिन ट्रिन का उसका भारी सा रिसीवर जब बचपन में हम उठाते थे तो अगर कान के पास लगाते थे तो मुंह के नीचे चला था नीचे वाला गोला और मुंह के पास लगाते थे तो फ़िर कान से बहुत ऊपर ही रह जाता था और बारी बारी से ऊपर नीचे करके फ़ोन किया सुना करते थे । नंबर डायल करते समय वो किर्र किर्र की खास आवाज़ ...ओह अरसा हो गया उसे सुने हुए


हा हा हा अशोका ब्लेड को कौन भूल सकता है भला । उस समय का शायद ही कोई युवक होगा जिसने अशोका ब्लेड को पहली बार अपनी ठुड्डी पर फ़ेरते हुए बिल्कुल राजा अशोक की तरह वो गर्व वाली फ़ीलिंग महसूस न की होगी
हाय वो तांगे में बैठ कर पूरे शहर की सवारी का लुत्फ़ । टुन टुन करके बजती घोडे जी की घंटियों की ध्वनि अब इस वातानुकूलित कार के स्टीरियो से कहीं भली लगती थी जी





ओह क्या क्या याद करूं ...और क्या क्या भूलूं ॥तो ला सकते हैं आप ढूंढ कर मेरे लिए मेरी ये चीज़ें ....देखिए ईनाम पक्का है ...

शनिवार, 13 नवंबर 2010

दिल्ली ब्लॉगर सम्मेलन की जैसी प्रेस रिलीज मैंने भेजी ......झा जी रिपोर्टिंग सर ...


आज दिनांक १३ नवंबर ,२०१० को दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित , NATIONAL INSTITUE OF NATIONAL AFFAIRS , प्रवासी टुडे के तत्वाधान में हिंदी संसार एवं नुक्कड ( सामूहिक ब्लॉग ) द्वारा आयोजित हिंदी ब्लॉग विमर्श सफ़लतापूर्वक ,संपन्न हुआ । अपराह्न तीन बजे से लेकर पांच बजे तक आयोजित सम्मेलन के मुख्य अथिति , प्रवासी भारतीय कनाडा निवासी प्रमुख ब्लॉगर व साहित्यकार , श्री समीर लाल उर्फ़ उडनतश्तरी ( इनके ब्लॉग का नाम ) थे और विशिष्ट अथिति के रूप में , प्रख्यात व्यंग्यकार श्री प्रेम जनमेजय और विख्यात तकनीक विशेषज्ञ लेखक श्री बालेन्दु दधीच जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई । कार्यक्रम के संयोजक की भूमिका जहां विख्यात साहित्यकार अविनाश वाचस्पति ( नुक्कड , सामूहिक ब्लॉग के मॉडरेटर ) ने निभाई तो संचालन का जिम्मा श्री अनिल जोशी जी जो हिंदी संसार एवं अक्षरम से जुडे हैं , ने संभाला । इनके अलावा सुश्री सरोज जी ने भी इस कार्यक्रम के संयोजन में बहुत ही महोत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।इस कार्यक्रम में दिल्ली एवं आसापस के लगभग चालीस ब्लॉगर्स ने शिरकत की तो वहीं विख्यात मीडिया रिसर्च स्कॉलर श्री सुधीर के नेतृत्व में लगभग पच्चीस मीडिया शिक्षार्थियों ने अपनी सक्रिय भागीदारी की । संगोष्ठी में हिस्सा लेने वाले ब्लॉगर्स में , विख्यात कवि एवं साहित्यकार सुश्री सुनीता शानू, डॉ वेद वयथित ,सुरेश यादव , हिंदी अंतर्जाल पर महिलाओं की प्रतिनिधित्व करता नारी सामूहिक ब्लॉग की मॉडरेटर सुश्री रचना , पत्रकार बिरादरी से सुश्री प्रतिभा कुशावाहा और श्री मयंक सक्सेना , के अलावा लगभग चालीस प्रसिद्ध ब्लॉगर्स , जैसे श्री सतीश सक्सेना , डॉ टी एस दराल , श्री अरविंद चतुर्वेदी , श्री एम वर्मा , श्री रतन सिंह शेखावत , श्री पद्म सिंह , श्री नीरज जाट , श्री शाहनवाज सिद्दकी , श्री राजीव एवं संजू तनेजा , श्री तारकेश्वर गिरि , श्री अजय कुमार झा , श्री कनिष्क कश्यप , श्री कौशल मिश्रा , श्री नवीन चंद्र जोशी , श्री मोहिन्द्र कुमार ,, श्री निरमल वैद्य , श्री पंकंज नारायण श्री दीपक बाबा , श्री राम बाबू , श्री अरुण सी रॉय , सुश्री अपूर्वा बजाज के अलावा सुधीर जी की एक शिक्षार्थी सुश्री रिया नागपाल ने जो ब्लॉगिंग पर ही रिसर्च कर रही हैं , ने आभासी परिचय को प्रत्यक्ष अनुभव में बदलते हुए न सिर्फ़ एक दूसरे को जाना बल्कि ब्लॉगजगत के वर्तमान और भविष्य को लेकर आपस में विचार विमर्श भी किया ।


कार्यक्रम का संचालन करते हुए श्री अनिल जोशी ने , पहले तीनों माननीय अतिथियों को पुष्प गुच्छ प्रदान करवाते हुए उनका हार्दिक स्वागत किया । कार्यक्रम के प्रारंभ में , विख्यात मीडियाकर्मी एवं ब्लॉगर श्री खुशदीप सहगल जी के पूज्य पिताजी के हाल हीं हुए निधन पर दुख प्रकट करते हुए एक मिनट का मौन रखा । इसके पश्चात औपचारिक परिचय और संक्षिप्त विचार आदान प्रदान का दौर चला । स्वागत भाषण श्री अविनाश वाचस्पति जी दिया । विशेष रूप से आमंत्रित तकनीक विशेषज्ञ लेखक श्री बालेन्दु दधीच जी ने अपनी बात रखते हुए हिंदी ब्लॉगिंग की वर्तमान स्थिति , रुझान , समस्याएं , संभावानाओं आदि पर खुल कर बोलते हुए न सिर्फ़ ब्लॉगर्स को आंकडों की भाषा में बताया समझाया बल्कि कई बारीकियों को भी साझा किया । माहौल को कवितामय करते हुए उन्होंने ब्लॉगर्स और ब्लॉगिंग पर करारी चुटकी लेते हुए एक कविता सुनाई जिसका रसास्वादन सभी ने उठाया । बीच में बीच में अल्पाहार और चाय कॉफ़ी का दौर भी चलता रहा । प्रख्यात व्यंग्यकार श्री प्रेम जनमेजय ने कहा कि वे इस क्षेत्र में नए हैं इसलिए सबका साथ अपेक्षित है । प्रवासी भारतीय और हिंदी ब्लॉगिंग के सुपर स्टार माने जाने वाले अत्यधिक लोकप्रिय श्री समीर लाल उर्फ़ उडनतश्तरी ने अपने मस्तमौला अंदाज़ में बोलते हुए न सिर्फ़ अपने अनुभव बांटे , बल्कि वहां मौजूद ब्लॉगर्स एवं शिक्षार्थियों के उत्सुक प्रश्नों का उत्तर दिया । सभी इस निष्कर्ष से सहमत थे कि आने वाले समय में हिंदी ब्लॉगिंग एक बडी ताकत के रूप में उभर कर सामने आएगा । इसलिए ब्लॉगिंग करने वाले हर ब्लॉगर को एक जिम्मेदारी का स्वत: एहसास होना चाहिए । लगभग तीन घंटे तक चली इस संगोष्ठी में सौहार्दपूर्ण वातावरण में सभी ने ब्लॉगिंग के विभिन्न आयामों पर चर्चा की । वर्षांत पर और कई संगोष्ठियों के आयोजन की सूचना भी श्री अजय कुमार झा ने दी ।

बुधवार, 10 नवंबर 2010

दैनिक विराट वैभव (दिल्ली ) में प्रकाशित मेरा एक आलेख ...अजय कुमार झा

वर्ष २००७ में ,ये आलेख , मेरे उपनाम , अजय रमाकांत ( उन दिनों मैं अजय रमाकांत के नाम से लिखा करता था ) से प्रकाशित हुआ था । आलेख को पढने के लिए उस पर चटका लगा दें , और छवि को और बडा करने के लिए दोबारा चटका दें ,और फ़िर आराम से उसे पढ सकते हैं ।

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

एक अमवस्या जो अंधेरी नहीं होती थी ...जिसे दीवाली मनाते थे हम







काश अबकि ,फ़िर वही
मनाऊं दीवाली ,
जो कभी मनाते थे हम
दशहरे के बाद से ही
जाने कितनी बार ,
किताब में से
आई दीवाली रे कविता ,को
जोर जोर से पढ जाते थे हम
वो दस दिन पहले से ही
घर के कोने
कोने की सफ़ाई ,
और कैसे मां का हाथ बटाते थे हम ,
फ़िर कुछ इधर उधर
खिसका के टेबल पलंग ,
दीवाली में घर का नया लुक लाते थे हम ,
रंगीन कागज पन्नी
से भी क्या खूब घर को सजाते थे हम ,
और मुझे याद है अब तलक हाय ,
सिर्फ़ दस पैसे में ही,
क्या खूब लंबी
पटाखा लडी लाते थे हम ,
दीवाली के दिन की वो चहल पहल ,
रसोई की खुशबू से
पूरा दिन मदमाते थे हम ,
कहां लेते थे
हर बार नए कपडे भी ,
बहुत बार पुराने में ही
दीवाली मनाते थे हम ,
और फ़िर वो शाम दीवाली की ,
छतो,छत्तियों और
परछत्तियों पर दीप जलाते थे हम ,
सबसे बाद तक
फ़ोडेंगे पटाखे , इसलिए ,
कितने ही जतन से
पटाखों को छुपाते थे हम ...
और फ़िर दीवाली की वो रात तक ही
कहां खत्म होती थी दीवाली भी ,
अगली सुबह अधफ़ूटे बचे
पटाखों भी तो ढूंढ लाते थे हम ...


काश कि फ़िर वो दीवाली मना पाऊं कभी .........काश कि ये मुमकिन हो कभी ....काश काश काश !!!!

दीवाली की बहुत बहुत मुबारकबाद दोस्तों , इस दीपों के पर्व पर हर दीप से निकला उजाला सबके तन मन आंगन , वन उपवन ,नंदन कानन, जीवन, सब प्रकाशमय और ओजपूर्ण हो जाए ..दीवाली की मुबारकबाद कायनात के हर कतरे को और हर कतरे की तरफ़ से सबको दीवाली की मुबारकबाद..........
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