आप सोच रहे होंगे कि मैंने ये कौन सी मुनादी करवा दी ?? क्या करूं जब मेरे लाख कोशिश करने के बाद भी मुझे मेरी ये खोई हुई चीजें नहीं मिल पा रही हैं तो फ़िर आप दोस्त किस काम के जी यदि आप मेरी ये चीज़ें मुझे ढूंढ कर न दे सकें तो । आज सुबह सुबह एक कौआ मुंडेर पर आकर बैठ गया हालांकि अब राजधानी में कौव्वे भी आपको राष्ट्रमंडल खेल आदि जैसे बडे आयोजनों की तरह ही कभी कभी दिखाई देते हैं ।मगर यकायक ही मुझे अपनी एक सबसे प्रिय पक्षी का ध्यान आ गया जिसके साथ मैं बचपन में खूब खेला करता था । जी हां वही छोटी सी शैतान सी चंचल सी अपनी गोरैया ...ओह जाने कितने बरस बीत गए अब तो उसे देखे हुए ...मन दुख और वितृष्णा से भर गया ...मैंने सोचा कि चलो कोई बात नहीं मैना को ही तलाशते हैं , मगर अफ़सोस कि वो भी नहीं दिखी कहीं
इसके बाद सोचा घर से बाहर निकला जाए और आसपास के बाग बगीचों में तितली को ही ढूंढा जाए और देखा जाए कि तितली कितनी बदली है । अजी मिलती तो देख भी लेते ........मगर अफ़सोस कि वो भी कहीं नहीं दिखी । हद है यार मैं थक हार कर वापस घर आ गया । फ़िर जेहन में एक ख्याल कौंधा कि देखूं तो सही कि कौन कौन सी वो चीज़ें थीं जिन्हें देखे मुझे एक अरसा हो गया है
पहला ख्याल आया वही पुराने ट्रिन ट्रिन का उसका भारी सा रिसीवर जब बचपन में हम उठाते थे तो अगर कान के पास लगाते थे तो मुंह के नीचे चला था नीचे वाला गोला और मुंह के पास लगाते थे तो फ़िर कान से बहुत ऊपर ही रह जाता था और बारी बारी से ऊपर नीचे करके फ़ोन किया सुना करते थे । नंबर डायल करते समय वो किर्र किर्र की खास आवाज़ ...ओह अरसा हो गया उसे सुने हुए
हा हा हा अशोका ब्लेड को कौन भूल सकता है भला । उस समय का शायद ही कोई युवक होगा जिसने अशोका ब्लेड को पहली बार अपनी ठुड्डी पर फ़ेरते हुए बिल्कुल राजा अशोक की तरह वो गर्व वाली फ़ीलिंग महसूस न की होगी
हाय वो तांगे में बैठ कर पूरे शहर की सवारी का लुत्फ़ । टुन टुन करके बजती घोडे जी की घंटियों की ध्वनि अब इस वातानुकूलित कार के स्टीरियो से कहीं भली लगती थी जी
ओह क्या क्या याद करूं ...और क्या क्या भूलूं ॥तो ला सकते हैं आप ढूंढ कर मेरे लिए मेरी ये चीज़ें ....देखिए ईनाम पक्का है ...
प्रचार खिडकी
बुधवार, 17 नवंबर 2010
मेरा कुछ सामान खो गया है ....तलाशने वाले को मेरी तरफ़ से खुशियों का एक कतरा दिया जाएगा ...
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यादों की धरोहर कौन ढूँढ कर ला सकता है?
जवाब देंहटाएंajayji,
जवाब देंहटाएंumda prastuti,
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
jnaab thode se samaan ke liyen itna bdha inaam aek qtraa khushi aaj ke zmaane men to aek qtraa khushi beshqimti chiz he jo nsib vaalon ko hi mil skti he. akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंआपको याद है उस स्थान की
जवाब देंहटाएंजो अब कार पार्किंग बन चुकी है
वे सड़कें, वे गलियां
जहां हम बिछा कर सोया करते थे
नींद भरपूर बोया करते थे, वे खटियां
वे चारपाईं
, सोने से पहले करते थे बतियां
जब बुझ जाती थीं सभी बत्तियां
तब जला करती थीं
झिलमिलाती थीं
तारों की चमकती चमकत्तियां
याद तो होगी
पर लिखते समय भूल गए होगे
न भी भूले हो
पर कितना लिखोगे
कब तक लिखोगे
धरोहर है बहुत सारी
सारी कैसे पेश करोगे
मुझे इनाम में कतरा नहीं
जवाब देंहटाएंचाहिए
टोकरा चाहिए क्योंकि मैं खुशियों की
नहीं करता जमाखोरी
बांट देता हूं सबमें
यही तो है मेरी कमजोरी।
आपके लिए तो टोकरा हाजिर है अविनाश भाई
जवाब देंहटाएंअरे! इन्हें तो मैं भी ढूंढ रहा था, चलिए मिल कर कोशिश करते हैं। पर और भी है बहुत कुछ है जो धीरे-धीरे लोप होता जा रहा है।
जवाब देंहटाएंआज तो कमाल हो गया .... आप को पोस्ट
जवाब देंहटाएंऔर
अविनाश जी कि टीप...
एक अजीब नास्टेल्जिया पैदा कर रहे हैं..
You truly made me nostalgic.
जवाब देंहटाएंसोचने पर मजबूर कर रहे हो झा जी :)
जवाब देंहटाएंरिन साबुन और निरमा :)
सोचने को विवश करती पोस्ट .
जवाब देंहटाएंझा साहब, तलाश कर तो मैं ला दूंगा पर अब आप रखोगे कहा ?
जवाब देंहटाएंअरे यह क्या किया भाई मुझे ३५ साल पुरानी यादों मैं पहुंचा दिया.
जवाब देंहटाएंबहुत मुश्किल है इन्हें ढूँढना तो.
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