प्रचार खिडकी

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

वही बातें वही अंदाज़ है , हां बदला बदला कुछ आज़ है








और देखिए कि पोजवा भी उहे है







तुम लटके लटकाए रहे बरसों तलक , अबे तुमसे इसका कारण भी बताया ना गया ,
तुम खाक हटाओगे भ्रष्टाचार खुद से , एक कायदे का कानून तक तो लाया ना गया






अबे हमें झटका नहीं लगा सियासत , तेरी नीयत जो निकली खोटी ,
जेब ही गायब कर डाली ,हाय पिरधान जी की पतलून कर दी कै बिलांक छोटी ???
 
जाने सफ़ल असफ़ल रही , राजस्थान के डाक्टरों की हडताल ,
लेकिन उन अभागों का क्या , जो इस बीच समाए काल के गाल
 
ये न समझना कि थक गया , आराम कर रहा हूं ,
तमाम करूंगा काम तुम्हारा यकीनन , वही काम कर रहा हूं ...
 
हम जानते हैं तुम्हें तेवर पसंद नहीं हमारा , हम अक्सर तुम्हें नागवार गुज़रेंगे ,
लेकिन सुनो , अब तो डाल ही लो आदत इसकी , ये तो अब हर बार गुज़रेंगे ..
 
चलो ज़ोर आज़माने की तैयारी करो , फ़िर तुम्हारे नोटों की खनक धमक देखेंगे ,
तुम्हारा सिलेबस कौन सा है , पढते हो कौन से राजनीति के तुम , सबक देखेंगे ...

ये खूब किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक बिल भी पास न किया ,
आओ अबकि जनता रेल चढाएंगे तुमको ,ऐसा इक एहसास न दिया ...
 
लो नेता जी खुदे , डिकलियर कर दिए हैं , ई था पिरजातंत्र का काला दिन ,
भर रात खुद किए नौटंकी तमाशा , आ बकवास में बीता साला दिन
 
शतरु भईया बोलिस हैं ,लल्लू जी को राष्ट्रीय व्यक्ति घोषित किया जाए ,
गज्जब है गज्जब आइडिया , कभी सत्तुआ तो कभी चारा पे पोषित किया जाए
 
अबे केतना स्यापा मचाए हो ,अईसन क्या इसमें , खास हो जाता ,
लल्लू का लपटन बन जाता , जो लोकपलवा ,घीच घाच के पास हो जाता ...
 
पिरधान जी : अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए कदम उठा रही सरकार ,
उंह्ह ! पचास परसेटं कुल टोटल में ,केतना करते हैं चीरफ़ाड , उहो बार बार...

सर्द हो गया धूप का गोला , और ठंडे पडा अलाव ,
बच न सकोगे किसी भी हाल , हाथी पर बैठ खुद हथिनी लडे चुनाव
 
तो तीन में आपने सीखा , कैसे बनाएं , लोकपाल का कीमा ,
मास्टर बिलास्टर अपने घर का , कराए हैं , सौ करोड का बीमा ..
 
लो अब नेताजी मजे में , खेलेंगे , जेल से अस्पताल , अस्पताल से जेल ,
ससुरा एक तो लल्लू सा बनाया लोकपाल , एक जगह से कंपार्ट्मेंट लाया , दूसरका में फ़ेल 
 
दाल रोटी खाइए ,प्रभु के गुण गाइए ,
अब तनिक दाल खरीद के दिखाइए ...

भारत निरमान ज़ारी है , आउर दाल रोटी भी भारी है
 
बहुत ललकारते रहे तुम , कि चुनाव के मैदान में आकर देखिए ,
चलिए हसरतें पूरी कर दें आपकी अबके , बस इक चक्कर लगाकर देखिए
 
उन कंगूरों पे लटके हुए लंगूर हैं , जिनपे पिरजातंत्र के खंबे हुआ करते थे ,
अबे हटो , ससुरा टुंडा है अब तो ,कभी इस कानून के हाथ लंबे हुआ करते थे .....
 
 
इत्ते लोग में एक ही काबिल , लोकपाल बिल , फ़ुल समझ गया सारा ,
आखिर दिमाग की थी, बत्ती जली , जबसे खाया ,मन को भाया, भूसा चारा ....
जय हो ..जोर से बोलिए लल्लू लोकपाल लसरघंट की जय

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. जय हो महाराज ... एक से बड़ कर एक ... जय हो ...

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  2. अब देखते हैं कि नया वर्ष क्या रंग [रंज] लाएगा॥

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  3. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति……………आगत विगत का फ़ेर छोडें
    नव वर्ष का स्वागत कर लें
    फिर पुराने ढर्रे पर ज़िन्दगी चल ले
    चलो कुछ देर भरम मे जी लें

    सबको कुछ दुआयें दे दें
    सबकी कुछ दुआयें ले लें
    2011 को विदाई दे दें
    2012 का स्वागत कर लें

    कुछ पल तो वर्तमान मे जी लें
    कुछ रस्म अदायगी हम भी कर लें
    एक शाम 2012 के नाम कर दें
    आओ नववर्ष का स्वागत कर लें

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  4. क्या जबरदस्त लिखा है आपने !
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

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  5. आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  6. नव वर्ष पर निराला अंदाज है. आनंद आया पढ़कर.

    नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.

    शुभकामनओं के साथ
    संजय भास्कर

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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