जैसा कि कुछ दिनों पहले मैंने , अपने दूसरे चिट्ठे में जिक्र किया था कि जबसे ब्लोग्गिंग शुरू की हैं, तभी से उससे जुडी तमाम ख़बरों पर स्वाभाविक रूप से नज़र चली ही जाती है, मुझे वो खबरें जब भी रोमांचित या प्रभावित करती हैं तो मन करता है कि आपको भी बताया जाए। अपनी उस पोस्ट में मैंने जिक्र किया था कि किस प्रकार इन दिनों प्रिंट और एकोक्त्रोनिक माधायमों ब्लॉग एवं ब्लोगेर्स की चर्चा हो रही है।
उसी बात को जारे रखते हुए आगे बताता हूँ, पिछले दिनों बहुत से हिन्दी समाचारपत्रों में अलग अलग लेखकों और ब्लोग्गारों द्वारा ब्लॉग विशेषकर हिन्दी ब्लोग्गिंग पर काफी कुछ लिखा गया, इसमें न सिर्फ़ ब्लॉग या उनके नाम के चर्चा हुई बल्कि कुछ बेहद तार्किक और लाभदायक टिप्नियाँ की गयी थी। पहला जिक्र करूंगा दैनिक भास्कर का, जिसमें शैनिवार को रविन्द्र भाई नियमित रूप ब्लॉग उवाच के नाम से ब्लोग्गिंग पर एक स्तम्भ लिखते हैं, इस बार उन्होंने किसी ऐसे ब्लॉग की चर्चा की थी जो पर्यावरण पर काफी कुछ लिख और बता रहा है। उन्होंने इस ब्लॉग की काफी तारीफ करते हुए बताया कि ऐसे ब्लॉग न सिर्फ़ अपना काम बखूबी कर रहे हैं बल्कि उनमें दी गयी जानकारी बहुत से लोगों को सोचने पर मजबूर कर रही है और यही बात उस ब्लॉग को सार्थक बना रही है।
राजधानी से निकलने वाले एक अन्य अखबार आज समाज में भी शनिवार को ही कंप्युटर जगत पर अक्सर लिखने और बहुत सी जानकारी रखने , देने वाले विद्वान् लेखक बालेन्दु दाधीच जी ने विस्तारपूर्वक इस बात की चर्चा की थी कि इतना समय बीत जाने के बाद भी किन किन कारणों से हिन्दी ब्लोग्गेर्स को ना तो वो जगह, न वो प्रसिद्धि , और न ही वो पैसा मिल पा रहा है जो कि एक आम ब्लॉगर जो किसी भी अन्य भाषा में लिख रहा है , को मिल रहा है। इसमें मौलिकता का अभाव , दूसरा ये भी कि किस प्रकार कोई विज्ञापन जो कि स्वाभाविक रूप से अंगरेजी उत्पाद का होता है को एक हिन्दी भाषी पाठक ये लेखक देखने में कितनी रूचि दिखा सकता है। हालांकि उन्होंने ये जरूर जिक्र किया कि जल्दी ही किसी न किसी माध्यम से इन सभी मुश्किलों से पार पाते हुए हिन्दी ब्लॉग जगत भी अपना एक अलग मुकाम बना लेगा।
बुधवार २८ मई को अपने रवीश कुमार जी ने दैनिक हिन्दुस्तान में एक स्तम्भ कमेंट्री में भी ब्लोग्गिंग की चर्चा की है। इसमें उन्होंने ब्लॉग पते के साथ बताया कि कि प्रकार हिन्दी ब्लॉग जगत पर हमारी महिला ब्लोग्गेर्स ने एक बगावती और बुलंद रुख अपना रखा है। नंदिनी जी के ब्लॉग की, notepad की, मनीषा जी की तथा और भी कई महिला ब्लोग्गेर्स की चर्चा बड़े ही दिलचस्प अंदाज़ में की गयी है। इसी दिन दैनिक त्रिबुने के दिल्ली संस्करण में भी विशेष पृष्ठ शिक्षा लोक में अपराजिता ने बताया कि ब्लोग्गिंग करने वाले वो ब्लॉगर जो विशुद्ध रूप से व्यावसायिक ब्लोग्गिंग कर रहे हैं उनमें पैसा कमाने की धुन के कारण कई तरह की मानसिक बीमारियाँ और तनाव भरी दिनचर्या का सामना कर रहे हैं।
पिछले कई दिनों से देख रहा हूँ कि अमर उजाला के दिल्ली संस्करण में हिन्दी ब्लोग्गिंग का जिक्र नियमित रूप से रहने लगा है । जैसे कि आज उन ब्लॉग पर बात की गयी है जिन पर वे बच्चे लिख रहे हैं जो इस बार माध्यमिक या उच्च माध्यमिक परीक्षाओं में बैठे थे। उस ख़बर में तो यहाँ तक बताया गया है कि किस प्रकार कई बच्चों ने तो अपने आत्महत्या के नोट तक लिख डाले हैं।
मगर इन सबके बीच मुझे एक अफ़सोस हमेशा रहता है कि ये तमाम बड़े लोग अपने आपको एक दायरे में समेटे हुए हैं, यहाँ ब्लॉगजगत पर भी और अपनी लेखनी में भी । कहीं भी नए ब्लोग्गेर्स, छोटे छोटे प्रयास करने वाले ब्लोग्गेर्स की कोई चर्चा नहीं , जिक्र तक नहीं। मैंने निश्चय किया है कि ब्लोग्जत पर जल्दी ही आने वाले अपने आलेख में मैं ज्यादा से ज्यादा ब्लोग्गेर्स से सबका परिचय करवाउंगा और कोशिश करूंगा कि उसे यहाँ भी स्कैन कर के लगा सकूं।
मेरा अगला पन्ना ;- वो आखिरी रात.
अच्छा विचार किया है. इतना रहेगा आपकी नये ब्लॉगर्स से परिचित कराती पोस्ट का. शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंaapkaa bahut bahut dhanyavaad udantashtaree jee.
जवाब देंहटाएंकेवल दो टिप्पणियां बहुत ना इंसाफी है |
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