प्रचार खिडकी
शनिवार, 24 मई 2008
रिश्ते बदल रहे हैं (एक कविता )
बदल रहा है ज़माना,
या कि,
रिश्ते बदल रहे हैं॥
अब तो लाशें,
और कातिल ,
एक ही,
घर के निकल रहे हैं॥
पर्त चिकनी , हो रही है,
पाप की,
अच्छे-अच्छे,
फिसल रहे हैं॥
बंदूक और खिलोने,
एक ही,
सांचे में ढल रहे हैं॥
जायज़ रिश्तों के,
खून से सीच कर,
नाजायज़ रिश्ते,
पल रहे हैं॥
मगर फिक्र की,
बात नहीं है,
हम ज़माने के,
साथ चल रहे हैं...
बदल रहा है ज़माना,
या कि,
रिश्ते बदल रहे हैं॥
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dukhad hai par sach hai.
जवाब देंहटाएंबदला सा माहोल है अब बदली सी हवा है
जवाब देंहटाएंरिश्ते अब बदलते वक्त से बदल रहे हैं !!!
sahi kahi.....रिश्ते बदल रहे हैं
जवाब देंहटाएंकड़वा सच.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता.
गहरे भाव
aap sabkaa dhanyavaad. kavita pasand karne ke liye.
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