प्रचार खिडकी

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

मेरे बाद भी मेरी आंखें.... देखेंगी ये जमाना ...


कभी कभी जीवन में कुछ अनसोचा सा हो जाता है..,..कई बार ये दुखदायी होता है तो कई बार ...ऐसा होता है कि ....लगता है कि...अरे मैंने तो यही सोचा था ...मगर ये पता नहीं था......कि ये सब यूं हो जायेगा.....मगर हो जाने पर एक सुकून सा मिलता है मन को ....यहां दिल्ली में दुर्गा पूजा बहुत धूमधाम से नहीं होती ...मेरा मतलब उतने धूमधाम से नहीं जितने कि हमारे बिहार या उसके पडोसी राज्य बंगाल में होती है...अलबत्ता ये जरूर है कि ...यहां रामलीला खूब होती है...न सिर्फ़ होती है...बल्कि जमती और जंचती भी है।

<<(देखो रे संस्था का बैनर)

इससे पहले हम जहां रहा करते थे ..उसके आसपास रामलीला नहीं होती थी सो कभी बच्चों का मन भी हुआ तो कहीं किसी एक या दो दिन का कार्यक्रम बना कर जाना पडता था उन्हें रामलीला दिखाने ...मगर अब जहां हमारा निवास स्थान है ...वहां से निकट ही रामलीला भी होती है ....और रावण जी को भी बाकायदा पूरे इत्मिनान से फ़ूंका जाता है...सो अब कोई बहाना नहीं चलता ..अब तो राम जी के पैदा होने से लेकर ...उनके पुत्रों के पैदा होने तक की सारी लीला हमें देखनी और दिखानी पडती है.....इसी बहाने अपना बचपन भी जी लेते हैं ।


मगर उस दिन जब रामलीला देखने पहुंचे तो एक सुखद अनुभव से मुलाकात हो गयी। वहां एक स्वयंसेवी संस्था ...देखो रे ...ने अपना मंच लगाया हुआ था ...और वे सबको घूम घूम कर बता रहे थे ......कि नेत्र दान से बडा कोई दान नहीं होता....ये संयोग की बात है कि कुछ दिनों पहले ही हम और हमारी श्रीमती जी आपस में बातचीत करते हुए इसी बात पर चर्चा कर रहे थे...और श्रीमती जी ने अपनी इच्छा भी हमारी तरह ही नेत्र दान करने की जाहिर की....हमें तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गयी ...तो बस देर किस बात की थी ....हमने झटपट उनके.
(देखो रे ..के स्वयंसेवक ) कार्यकर्ताओं से आवेदन का फ़ार्म भर दिया .....और कर दिया अपने नेत्र दान का वादा .

सच कहता हूं ..उस दिन जो सुकून मिला ..वो अब सारी जिंदगी मेरे साथ रहेगा....और अपनी आखों का क्या कहूं ....ये तो मुझ से भी बडी हो गयीं...मेरे जाने के बाद भी ....किसी के जीवन में ..न सिर्फ़ रोशनी बिखेरेंगी बल्कि ....मेरी आखें...मेरे बाद भी जमाना देखेंगी......मुझे तो लगता है कि शायद ये सिर्फ़ जागरूगकता की ही कमी है ...अन्यथा लोग बहुत से हैं ऐसे जो नेत्र दान करने को इच्छुक रहते हैं......

अजी इसके बाद तो रामलीला ....और व्हां के मेले का आनंद हमें भी खूब आया...मेरे आग्रह और सुझाव पर कुल ११ लोग ऐसे और निकले मेरी जान पहचान के ...जिन्होंने नेत्र दान किया.....बस जी इसके बाद तो झूलों और लीला के बीच दशहरा कैसे बीता .....क्या कहें...

(चकाचौंध झूले...जिनपे हम भी खूब झूले...

16 टिप्‍पणियां:

  1. इस पुनीत कार्य के लिए आप और भाभीजी दोनों साधुवाद के पात्र है |
    बहुत बहुत शुभकामनाएं |

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  2. sab isi tarah prerna lein aur kisi ki zindagi ko roshan karein..........yahi kamna karte hain

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  3. sab isi tarah prerna lein aur kisi ki zindagi ko roshan karein..........yahi kamna karte hain

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  4. एक प्रेरणादायी अनुभव.
    बहुत धन्यवाद आपका.

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  5. अंग या शरीर दान करना बहुत भला काम है। जिस में कुछ नहीं लगता। फिर भी लोग इस से कतराते हैं। कल राजस्थानी और हिन्दी के प्रसिद्ध कवि हरीश भादानी का देहान्त हो गया। कल बीकानेर में उन का पार्थिव शरीर दर्शनार्थ रखा गया था। आज उन का अंतिम संस्कार नहीं किया गया अपितु उन के शरीर को मेडीकल कॉलेज को भेज दिया गया। वे अपना शरीर दान कर गए थे।

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  6. एक अच्छे कार्य के लिए मेरी आपको सुभकामनाए !

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  7. झा जी नेत्रदान, महादान...बधाई

    लेकिन आपने साथ ही जब तक कायनात रहेगी, नैन मटका करने
    का इंतज़ाम भी कर लिया...

    नैनों से आवाज़ आएगी...झा जी कहिन...और देखने वाले के होठों पर मुस्कान की शत प्रतिशत गारंटी...

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  8. इस नेक इरादे के लिए आपको साधुवाद .....

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  9. आपबीती बने जगबीती
    नेत्र बनें जगबाती।

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  10. इस पुनीत और महान कार्य के लिये भाभीजी और आपको बहुत बहुत बधाई।

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  11. नेत्रदान=महादान...
    जोत से जोत जगाते चलो

    बहुत ही बढिया कार्य किया आपने

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  12. आप जीवन मे जो भी अच्छे काम कर रहे है उनमे से यह एक अच्छा काम है । द्विवेदी जी से यह जानकर कि भादानी जी अपना शरीर दान कर गये है बहुत प्रेरणा मिली ।

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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