अबकि मेरे कुछ
दोस्तों की दीपावली
बहुत अच्छी मनी,
या कि उन्होंने ,
इसे खुद ही
अच्छी तरह मनाया।
होली में कुछ
गडबड हो गई थी,
मगर इस बार ,
पर्याप्त थी बोतलें,
और चखना भी ,
बहुत स्वादिष्ट था,
इसलिये सबने,
चार चार पैग, ज्यादा चढाया।
बस इतना हुआ कि ,
जो बच्चे उनके
दिवाली मनाने को आतुर थे,
जब देखा कि ,
उनके पापा व्यस्त हैं,
मगर नसीहत थी कि
पटाखे किसी बडे के साथ चलाना,
सो क्या करते, सबने,
उन पटाखों को मेरे साथ चलाया।
क्योंकि उन्हें पता था,
कि जब अंकल को
होली के रंग पसंद आये,
तो दिवाली की रोशनी भी भायेगी.........................................
सोचता हूं...दोस्तों के पर्व कितने कमाल के होते हैं न..कितनी समानता , कितनी एकरूपता होती है...रंगों का पर्व हो या रोशनी का...भाई बहन का हो या पति पत्नि का सब एक ही जज्बे से मनाया जाता है....सब कुछ ग्लासों में ही डुबाया जाता है॥
दारू के अन्धे कितना कुछ मिस कर जाते हैं!
जवाब देंहटाएंउनसे कहिए तो कहेंगे न पीने वाले क्या जानें?
शायद वे एकरस हो जाते हैं!
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जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे!
जवाब देंहटाएंभाई हम किसी भी त्योहार पर कभी नही पीते... अरे उस दिन तो बच्चो के संग वेसे ही खुशी का नशा होता है ना....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आप की दिपावली भी बहुत सुंदर लगी.
अब आप बच्चों के दोस्त हो गये और इस तरह बड़े हो गये ।
जवाब देंहटाएंअपुन ने तो आज तक नहीं पी
जवाब देंहटाएंपीने वालों को पीने का बहाना चाहिये..मगर यार, चार पैग एक्सट्रा...तो ओरीजनल कितने का कोटा है भई..
जवाब देंहटाएंझा जी, मैंने ऐसी ही पार्टी की रिपोर्ट पर अनिल पुसदकर जी को ये दो लाइना लिखी थीं, वही आपको भी ठेल रहा हूं...
जवाब देंहटाएंजहां चार यार मिल जाए...
वही रात हो गुलज़ार
जहां चार यार...
फिर क्या सोचा, कब मिल रहे हैं...
जय हिंद...
जो खुशी रंगों और रोशनी में है वह नशे मे कहां ।
जवाब देंहटाएंaajkal jasn kaa matalab ban gayaa hai----sharab,baki sabhi rang fike par gaye hai, bahut achhaa.
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