संचिका वाली सुश्री लवली कुमारी ने अपनी इस पोस्ट के माध्यम से बहुत ही मह्त्वपूर्ण मुद्दा उठाया। उन्होंने अपने शोध /अध्य्यन और अनुभव के आधार पर महिलाओं में परकाया प्रवेश ..या कहें कि भूत प्रेत का आना ..पर एक सारगर्भित पोस्ट प्रस्तुत की । मैं खुद इस विषय पर काफ़ी पहले से कुछ लिखना चाहता था ।हालांकि इसका कारण मेरे पास कुछ निजी था । दरअसल आज से लगभग बीस साल पहले जब मेरे दीदी का स्वर्गवास हुआ तो उसके कुछ महीनों बाद मेरी एक चचेरी बहन की ससुराल से ये संदेश आया कि दीदी की तथाकथित आत्मा मेरी उस बहन के अंदर आ जाती है और उसे तथा उसके परिवार को तंग करती है।मुझे बहुत क्रोध आया क्योंकि मैं जानता था कि मेरी उस चचेरी बहन से हमारी मुलाकात भी शायद कभी एक आध बार ही हुई हो। इसके बाद अभी कुछ समय पहले स्वर्गवासी हुई मेरी माता जी भी उसी चचेरी बहन के सपने में आ गयी और उसके अनुसार उन्होंने उसे मारा पीटा। इस बार मेरी सहन शक्ति जवाब दे रही थी...सो मैंने कहलवा भेजा कि ..दरअसल वो ये कहना चाह रही थीं कि इतने नाटक कर रही हो किसी न किसी दिन तुम्हें सच में ही आकर इस बात के लिये कोई पीटेगा। वो और नाराज़ हो गयी और अब उन्हें सपने आने बंद हो गये।हमारे परिवार में इस भूत प्रेत के आने की बात हमारी दादी से शुरू हुई थी..जिन्हें हमने अपने बचपन से अभी कुछ दिनों पहले तक, जब तक कि उन्होंने बिस्तर न पकड लिया , किसी न किसी प्रेतात्मा, देवी के साथ ही देखा। इसका एक असर तो ये हुआ कि परिवार की कम से कम चार महिलायें/बेटियां/बहुएं .उन्हीं की प्रेरणा पाकर आगे जाकर काफ़ी प्रसिद्ध हुईं...मतलब खूब चर्चा हुई उनकी...और लानत मलामत भी।
अब जबकि लवली जी ने बहस की शुरूआत कर दी है तो लगा कि उचित होगा कि इस बहस को आगे बढाया जाये। इस व्यवहार/रोग/प्रचलन ....जो भी कहिये ..के वैज्ञानिक कारण और पहलू से मैं इतना वाकिफ़ नहीं हूं । किंतु अपने तथ्यों के संकलन और अनुभव के आधार पर मैंने कुछ दिलचस्प परिणाम ढूंढे हैं जिन्हें आपके सामने रख रहा हूं ।
उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में ये उतना देखने में नहीं आता ।
जी हां अब इसके कारण क्या हैं ये तो पता नहीं, किंतु ये सच है कि उत्तर भारत के बिहार , उत्तर प्रदेश , उडीसा, बंगाल आदि राज्यों में ही ये सबसे ज्यादा प्रचलित है। दक्षिण भारत में किसी एक राज्य, या किसी अमुक क्षेत्र में इस तरह के भूत प्रेतों का चलन महिलाओं में नहीं देखने को मिलता है। ऐसा नहीं है कि वे पराशक्तियों के अस्तित्व को नकारते हैं। मगर भूत प्रेत, देवी देवता, आदि मनुष्यों पर आते नहीं देखे जाते।
पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में इसका प्रतिशत लगभग नब्बे गुना ज्यादा है ।भूत प्रेत, चुडैल, देवी माता...आदि का जब भी जिक्र आता है तो अधिकांश घटनाओं में इससे ग्रस्त महिलाएं ही होती हैं...जबकि इनका इलाज करने वाले तथाकथित तांत्रिक/ओझा/गुनी/ ...अक्सर पुरुष होते हैं..जो खुद भी इनका इलाज करने के लिये ऐसी ही परकाया प्रवेश की शक्तियों के अपने अंदर होने का दावा करते हैं। इसका एक दुखद पहलू ये है कि अक्सर ये गुनी /ओझा/ ..इन सबका इलाज करने के बहाने ....इन पीडित महिलाओं का शोषण ..दैहिक/आर्थिक/सामाजिक रूप से करते हैं।मैंने अपने ग्राम्य जीवन के दौरान ओझाओं को इन महिलाओं के शरीर से इन भूतों का साया निकालने के लिये वो सब करते देखा है ....कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा एक दिलचस्प जानकारी ये मिली कि...ग्रामीण क्षेत्रों में ही ये भूत प्रेत, चुडैल आदि विचरते हैं। शायद वे ये सोच कर शहर नहीं आते होंगे कि शहर का इंसान तो अपने आप में ही किसी भूत से कम नहीं। यहां स्त्रियों में जो भी इस तरह की घटना घटती भी है तो वो देवी के आने के रूप में ही ज्यादा प्रचलित है। इसी तरह कामकाजी महिलाओं में इन परकाया भूतों का संचारण नहीं हो पाता है। शायद ही किसी महिला ...सैनिक/अधिकारी /कर्मचारी /डाक्टर आदि पर भूत आते देखा गया हो।
जहां तक इनके कारणों की बात है तो इसके प्रचलन का क्षेत्र/ पीडित महिलाओं का सामाजिक/शैक्षिक/मानसिक स्तर को देखते हुए कुछ बातें तो निष्कर्ष स्वरूप निकल ही आती हैं। ये मूलत: अशिक्षा/अज्ञान/और अंधविश्वास के मिलन का ही परिणाम होता है। सामाजिक परिवेश , धार्मिक कर्मकांड ,जागरूकता का अभाव तथा सरकार द्वारा ऐसी समस्याओं की उपेक्षा.....ही वो कारक हैं जिसके कारण आज जबकि देश वैज्ञानिक रूप से इतना विकसित हो चुका है ...फ़िर भी ये सब बदस्तूर जारी है। और निकट भविष्य में भी जारी रहेगा...ऐसा मुझे लगता है।
ये विषय बेहद रोचक और रहस्यमय है । कभी लगता है कि सब कुछ सच है , कभी लगता है कि भ्रम की दशा है । ठीक-ठीक कुछ भी तय कर पाना काफ़ी मुश्किल है ।
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जवाब देंहटाएंमहज़ रोमाँचित करने के लिये रोचक विषय है,
मैंनें लवली के पोस्ट पर टिप्पणी नहीं दी । लवली क्षमा करना, वहाँ कुछ कहना हाईली वोलेटाइल हो जाता ।
तऽ.. झा जी, जब आहाँ ई विशय उठैबे कलिय छी, तऽ.. राऊर कने हम टिप्पनी देल सेफ़ बूझईछी ।
यह एक असामान्य व्यक्तित्व विकार है, जो मानसिक स्तर पर किन्हीं प्रवृत्तिवश उपजता है ।
अँधविश्वास से कूपमँडित परिवेश, अशिक्षा और अतृप्त आकाँक्षायें इसको पोसती हैं ।
उफ़ाननुमा एक दौरा आने या आकर गुज़र जाने के बाद भी इसका रोगी अपने स्वयं के व्यवहार को गलत, असँगत या मानवेतर नहीं मानता ।
उसका अचेतन मन यह मनवा कर रहता है कि,शे ईश्वर, मुझ पर या मेरे कृत्य पर अविश्वास करने वालों को माफ़ कर देना क्योंकि यह नहीं जानते कि यह मेरे लिये क्या सोच या कह रहे हैं । इसकी अचानक उत्पत्ति को अक्यूट कन्वर्ज़न रियेक्शन भी कहते हैं । इसके शिकार होने वालों में आते हैं :
1. अपरिपक्व व्यक्तित्व
2. हिस्टीरिकल व्यक्तित्व
3. स्वबाध्य ( ओबसेसिव ) व्यक्तित्व
4. चिंतित व्यक्तित्व
5. निर्भर व्यक्तित्व
6. सँदेही व्यक्तित्व
7. समाज से त्याज्य व्यक्तित्व
पर लवली के पोस्ट सहित इस आलेख से आनन्द आया ।
ब्लॉगिंग ज़वान हो रैली है, भाई !
chacha tippu singh ke nam se post nahi likhte jha ji.ya yahan bhi sameer lal ya tau se dar lagta hai.
जवाब देंहटाएंमैंनें लवली के पोस्ट पर टिप्पणी नहीं दी । लवली क्षमा करना, वहाँ कुछ कहना हाईली वोलेटाइल हो जाता
जवाब देंहटाएं- काहे हमसे ऐसी क्या गलती हो गई ..हम स्पस्ट नही लिख सके का अमर जी अपना मंतव्य?..बाकि आज कल आप हमरे बिलोग पर नही आते हमसे कोनो गलती हो गई का?
@अजय भाई - सुन्दर ...आगे भी इसपर लिखा जाएगा.
सबसे महत्वपूर्ण है वो बात जो अमर जी ने कही इस विषय को भटकने से बचाना ..अनुशासन बनाये रखिएगा ..मोडरेशन है न :-)(इशारा समझ गए होंगे)
मै डाक्टर अमर कुमार के विचारो से सहमत हूँ भूत प्रेत सब मानसिक बीमारी के अंग है ...... ट्रीटमेंट से अच्छे हो जाते है ..... परकाया प्रवेश कपोल कल्पना है .
जवाब देंहटाएंदक्षिण में यह सब कम होना कहीं वहां की मात्रिसत्तात्मक्ता तो नहीं है ?
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग ज़वान हो रैली है, भाई !
जवाब देंहटाएंनही होंगी त हम पिट - पिट के कर देंगे ..अब बहुत हो गया "शैशवास्था राग" ..इसका पटाक्षेप होना चाहिए.
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जवाब देंहटाएं’उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में ये उतना देखने में नहीं आता ।
जवाब देंहटाएंजी हां अब इसके कारण क्या हैं ये तो पता नहीं, किंतु ये सच है कि उत्तर भारत के बिहार , उत्तर प्रदेश , उडीसा, बंगाल आदि राज्यों में ही ये सबसे ज्यादा प्रचलित है। ,
बौद्ध-धर्म जब हीनयान और महायान में बंटा उस समय का इतिहास कुछ प्रकाश डाल सकता है।
भाई हम भी आप से ओर डा० अमर जी की टिपण्णी से सहमत है,ऎसा ज्यादा तर गरीब या अनपढ तबके मै देखा जाता है, लेकिन पढा लिखा तबका भी इसे मानने से पीछे नही रहता,
जवाब देंहटाएंना तो कोई माता वाता आती है ना कोई भुत भुतनि, बस...
बेहद उम्दा और चर्चित विषय बन गया है ये सब हक़ीक़त में कुछ नही होता क्योंकि गाँव में जहाँ ज़्यादातर लोग तो पढ़े लिखे होते नही वहाँ यह बीमारी ज़्यादा चर्चा में आती है .यह एक तरह की मानसिक बीमारी हो सकती है बस इससे ज़्यादा कुछ नही फिर भी यह मेरा व्यक्तिगत विचार है अगर किसी को कुछ सच्चाई लगती है तो ......
जवाब देंहटाएंइस बहाने से तांत्रिक लोगों की चाँदी ज़रूर हो जाती है....सामाजिक बीमारी है और इसमें सुधार की ज़रूरत है...
बढ़िया प्रसंग!!!
धन्यवाद!!
डा० अमर कुमार जी और आप से पूर्णत्या सहमत
जवाब देंहटाएंअजय जी सन्क्षेप मे मै यह कहना चाहूंगा कि
जवाब देंहटाएं1.दक्षिण मे स्त्री की स्थिति उत्तर की स्त्री की अपेक्षा बेहतर है ।
2 पुरुष्प्रधान व्यवस्था मे स्त्री का शोषण अधिक होता है जैसे बच्चा न होने पर स्त्री को ही कोसा जाता है न कि पुरुष को ( यह साक्षर-निरक्षर के भेद से परे है )
3 ग्रामीण क्षेत्र मे अशिक्षा एक प्रमुख कारण है ।
4 मनोविज्ञान के चिकित्सको की बेहद कमी है ।
अत: चिकित्सको और वैज्ञानिक द्रष्टि वाले समाज्सेवको/लेखको/कार्य्कर्ताओं को इस दिशा मे कार्य करना चाहिये । डॉ. अमर कुमार आपसे अनुरोध है कि सायकोसोमेटिक डिसॉर्डर्स को लेकर एक पोस्ट लिखें । आगे की बात उसके बाद ही होगी ।
शरद कोकास जी से पूर्ण तौर पर सहमत !!
जवाब देंहटाएंझा जी, आजकल आदमी खुद ही इतने बडें प्रेत हो गए हैं, फिर असली प्रेतों की क्या मजाल जो उनसे पंगा ले...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
एक रहस्यमयी विषयवस्तु पर दिलचस्प पोस्ट
जवाब देंहटाएंबी एस पाबला
aapki tokaree to hiron se bharee hui hai,no dought comments ise our chamak deta hai, very nice aalekh.kalyan isee me hai ki is vishay kee rochakta banaaye rakhen per ise andhviswas hi maana jaye.
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