प्रचार खिडकी

बुधवार, 30 नवंबर 2011

चंद पंक्तियां , बिखरी सिमटी सी









कभी बिकते हैं , कभी किसी के खरीददार हो गए हैं ,
संभालो बे इस देश को ,हम तो बस ,बाज़ार हो गए हैं ॥
 


पत्थर का जंगल , बस रहा है ,बहुत बेतरतीब सा ,
बुत सा एक प्रधान मिला ,देश हुआ बदनसीब सा ॥
 
 
 
अबे कित्ते दिनों तक यूं गोलघर में काम नहीं करोगे ,
कभी झांक के देखना आईने में ,वहीं डूब के मरोगे ॥






अबे रुको , हटो बे , हमसे न कहना कि संभलो , आगे मंदी है ,
हम जनता जनार्दन हैं झेल लेंगे , बेशक सियासत की नज़र गंदी है






डेली धमाल से देस का पोलटिस में उठा रे गजब बवाल ,
दो सोटे उसके पीछे , और दो इसके , सबका लालम लाल ॥






आज अचानक शाम को ठंड का एक थपेडा चेहरे से टकराया ,
मैंने पूछा तो , शर्माता सकुचाता ठंड का मौसम बोला , अभी आया अभी आया ॥






बहिन जी :केंद्र में आने पर देंगे 365 दिन रोजगार ,
टीए डीए का चिंता न करें , एक एक ठो हाथी भी सबको देगी सरकार ॥




बहिन जी : राहुल की नींद हाथी ने उडाई है ,
बस इत्ता और बता दो ,हथवा कमाइस जादे कि हथिनी कमाई है ॥






हमारे हवाई अड्डे खाली करे अमेरिका : पाकिस्तान
हम वहां बस अड्डे खोलना चाहते हैं : पाकिस्तान

 
 
 
 
भक्तजनों , संसद में फ़िर से ,कुकुर कटौंज है ज़ारी ,
अईसन जमा के मारा हाय जनता का हाथ बडा रे भारी ॥



5 टिप्‍पणियां:

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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