बहुत खराब लिखने बैठा हूँ मैं
बारूद की स्याही से , नया इंकलाब लिखने बैठा हूं मैं ,
सियासतदानों , तुम्हारा ही तो हिसाब लिखने बैठा हूं मैं
बहुत लिख लिया , शब्दों को सुंदर बना बना के ,
कसम से तुम्हारे लिए तो बहुत , खराब लिखने बैठा हूं मैं
टलता ही रहा है अब तक , आमना सामना हमारा ,
लेके सवालों की तुम्हारी सूची, जवाब लिखने बैठा हूं मैं
सपने देखूं , फ़िर साकार करूं उसे , इतनी फ़ुर्सत कहां ,
खुली आंखों से ही इक , ख्वाब लिखने बैठा हूं मैं ......
मुझे पता था कि बेईमानी कर ही बैठूंगा मैं ,अकेले में,
सामने रख कर आईना , किताब लिखने बैठा हूं मैं ...
जबसे सुना है कि उन्हें फ़ूलों से मुहब्बत है ,
खत के कोने पे रख के ,गुलाब , लिखने बैठा हूं मैं
........
वाह ।
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया और आभार सुशील जी
हटाएंक्या बात है ... आज ऐसे ही लेखन की जरूरत है ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार दिगंबर जी , ये पूर्वप्रकाशित रचना है आपको पसंद आई मुझे अच्छा लगा
हटाएंबहुत सुन्दर .....
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया और आभार कौशल लाल जी
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’आँखों ही आँखों में इशारा हो गया - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंबुलेटिन टीम का आभार और शुक्रिया ।राजा साहब आपका आभार पोस्ट को मान व् स्थान देने के लिए
हटाएंअच्छे और खराब की परिभाषा बदल जाती है ,आप अच्छावाला खराब लिख रहे हैं - कोई बात नहीं थोड़ी तुर्शी है तो ...
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए आभार । स्नेह बनाए रखिएगा
हटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया राजीव भाई आपका बहुत बहुत आभार
हटाएंशुक्रिया राजीव भाई आपका बहुत बहुत आभार
हटाएंultimate!
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया और आभार पारुल जी
हटाएंबारूद की स्याही से , नया इंकलाब लिखने बैठा हूं मैं ,
जवाब देंहटाएंसियासतदानों , तुम्हारा ही तो हिसाब लिखने बैठा हूं मैं
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ..
बहुत बहुत शुक्रिया और आभार संजय
हटाएंबेहतरीन रूमानी कविता ... शब्द मन में तैर रहे है
जवाब देंहटाएंबहुत लिख लिया , शब्दों को सुंदर बना बना के ,
जवाब देंहटाएंकसम से तुम्हारे लिए तो बहुत , खराब लिखने बैठा हूं मैं
...बहुत खूब
बहुत शुक्रिया और आभार कविता जी
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