प्रचार खिडकी

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

बहुत खराब लिखने बैठा हूँ मैं







बारूद की स्याही से , नया इंकलाब लिखने बैठा हूं मैं ,
सियासतदानों , तुम्हारा ही तो हिसाब लिखने बैठा हूं मैं
बहुत लिख लिया , शब्दों को सुंदर बना बना के ,
कसम से तुम्हारे लिए तो बहुत , खराब लिखने बैठा हूं मैं
टलता ही रहा है अब तक , आमना सामना हमारा ,
लेके सवालों की तुम्हारी सूची, जवाब लिखने बैठा हूं मैं
सपने देखूं , फ़िर साकार करूं उसे , इतनी फ़ुर्सत कहां ,
खुली आंखों से ही इक , ख्वाब लिखने बैठा हूं मैं ......
मुझे पता था कि बेईमानी कर ही बैठूंगा मैं ,अकेले में,
सामने रख कर आईना , किताब लिखने बैठा हूं मैं ...
 
जबसे सुना है कि उन्हें फ़ूलों से मुहब्बत है ,
खत के कोने पे रख के ,गुलाब , लिखने बैठा हूं मैं 
........

20 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है ... आज ऐसे ही लेखन की जरूरत है ...

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    उत्तर
    1. शुक्रिया और आभार दिगंबर जी , ये पूर्वप्रकाशित रचना है आपको पसंद आई मुझे अच्छा लगा

      हटाएं
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’आँखों ही आँखों में इशारा हो गया - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बुलेटिन टीम का आभार और शुक्रिया ।राजा साहब आपका आभार पोस्ट को मान व् स्थान देने के लिए

      हटाएं
  3. अच्छे और खराब की परिभाषा बदल जाती है ,आप अच्छावाला खराब लिख रहे हैं - कोई बात नहीं थोड़ी तुर्शी है तो ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बारूद की स्याही से , नया इंकलाब लिखने बैठा हूं मैं ,
    सियासतदानों , तुम्हारा ही तो हिसाब लिखने बैठा हूं मैं

    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ..

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन रूमानी कविता ... शब्द मन में तैर रहे है

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत लिख लिया , शब्दों को सुंदर बना बना के ,
    कसम से तुम्हारे लिए तो बहुत , खराब लिखने बैठा हूं मैं
    ...बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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