अब नर्म धूप,
मेरे आँगन भी,
उतरने लगी है।
टिमटिमाते तारों की रौशनी,
और चाँद की ठंडक,
छत पर,
छिटकने लगी है।
पुरबिया पवनें,
खींच लाई हैं,
जो बदली , वो,
घुमड़ने लगी है।
दर्पर्ण मांज रहा है,
ख़ुद को,
आलमारी भी,
सँवरने लगी है ।
फूलों के खिलने में,
समय है,
कलियों पर ही,
तितलियाँ,
थिरकने लगी हैं।
शायद ख़बर,
हो गयी सबको,
घर मेरे भी, बिटिया,
किलकने लगी है.......
Ahaa...lovely!!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अभि
हटाएंवाह वाह बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वंदना जी ,स्नेह बनाए रखियेगा |
हटाएंबहुत सुन्दर .ढेर सी बधाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी
हटाएंकलरव, किल्कारियाँ, अठखेलियां........आनंद, सकून, तृप्ति
जवाब देंहटाएंअहा , इतने सारे सुन्दर सुन्दर शब्द |आभार आपका सर
हटाएंबिटिया को प्यार....
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