चंद बिखरे सिमटे आखर , बेतरतीब ,बेलौस से , बात बेबात कहे लिखे गए , उन्हें यूं ही सहेज दिया है ........
बहुत उम्दा सभी....जिओ!!
आहा दादा आपका स्नेह और आशीष यूं ही बना रहे |
बहुत कमाल का लिखा हुआ है ...
आपका शुक्रिया और आभार दिगंबर जी , स्नेह बनाए रखियेगा
बेहतरीन !
शुक्रिया और आभार अमृता जी आपका
......बेहतरीन बहुत खूब अजय जी
शुक्रिया और आभार संजय
बेहतरीन बिखरे आखर .... अनाम आदमी कब से हो गए ?
टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....
बहुत उम्दा सभी....जिओ!!
जवाब देंहटाएंआहा दादा आपका स्नेह और आशीष यूं ही बना रहे |
हटाएंबहुत कमाल का लिखा हुआ है ...
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया और आभार दिगंबर जी , स्नेह बनाए रखियेगा
हटाएंबेहतरीन !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार अमृता जी आपका
हटाएं......बेहतरीन बहुत खूब अजय जी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार संजय
हटाएंबेहतरीन बिखरे आखर .... अनाम आदमी कब से हो गए ?
जवाब देंहटाएं