चंद बिखरे सिमटे से आखर , कुछ बेतरतीब उनींदी उंघती सी पंक्तियाँ
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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....
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