प्रचार खिडकी

शनिवार, 3 नवंबर 2007

सड़क तुम क्यों नहीं चलती

उस दिन अचानक ,
चलते,चलते,
पूछ बैठा,
काली पक्की सड़क से,
तुम क्यों नहीं चलती,
या कि क्यों नहीं चली जाती,
कहीं और,

वो हमेशा कि तरह,
दृढ ,और सख्त , बोली,
जो मैं चली जाऊं ,
कहीं और, तो,
तुम भी चले जाओगे,
कहीं से कहीं,

और फिर ,
कौन देगा,
उन, कच्ची पगडंडियों को ,
सहारा,
और,


टूट जायेगी आस
उन लाल ईंटों से,
बनी सड़कों की , जो,
बनना चाहती हैं ,
मुझ सी,
सख्त और श्याम॥


झोलटनमाँ

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