प्रचार खिडकी

शुक्रवार, 2 नवंबर 2007

किस्म किस्म के कबाड़.(ब्लोग kaa मकसद )

यूं तो ये काम सुबह सुबह घूमने वाले सैकड़ों कबाडियों का होता है मगर बदकिस्मती या खुस्किस्मती से , वे बेचारे तो यहाँ तक नहीं पहुंच सकते इसलिए उन्होने मुझे अधिकृत किया है कि यहाँ मैं उनका authorized बन्दा बनके किस्म किस्म के कबाड़ इकठ्ठा करूं । इसलिए मुझे ये कबाड़खाना ब्लोग बनाना पड़ा ।
वैसे जब ये बात मैने अपनी पत्नी को बताई तो उनका कहना था कि , ये क्यों नहीं कहते कि अपने लिए नया घर ढूँढने जा रहे हो । यहाँ घर पर तो पेपर, किताब , मैगज़ीन , सबसे दिन भर कबाड़ ढूँढते ही rahtey हो वहाँ भी जाकर कबाड़ ही फैलाओगे । सच है खानदानी कबाड़ी लगते हो।

अब क्या करें मेरी नज़र में उनके सारे सीरियल कबाड़ है वो भी ऐसे बदबूदार कि संदांध आते है उनसे तो मुझे, खैर,। वैसे तो हमारे आसपास ही किस्म किस्म का इतना कबाड़ फैला है कि हम नज़र डाले ना डाले पता चल ही जाता है । लेकिन यहाँ में आपको ऐसे ऐसे कबाड़ और कबाडियों से मिलवाने वाला हूँ कि आप कहेंगे कि यार ये कबाड़ तो reecylcle होने लायक है ।
तो बस देखते जाइये और पढ़ते जाईये।
झोल तन माँ

1 टिप्पणी:

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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