प्रचार खिडकी

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007

कठिन और दुखदाई रहा २७ देसmber २००७

कल से जो दोनो दुख्दाए खबरें सूनी उसके बाद किसी और चीज़ सुनने पढ़ने देखने का मन ही नहीं किया। अब तो ऐसा लगने लगा है कि जितनी जल्दी हो ये साल बीत जाये तो अच्छा।


पहली खबर थी भारत की पहली महिला पुलिस ओफ्फिसर किरण बेदी का वी आर अस लेकर पुलिस फोर्स से सेवा निव्रत्ती ले लेना। इससे बड़ी बदकिस्मती और इस देश कि क्या हो सकती है कि किरण बेदी जैसी महिला अधिकारी के साथ इस हद तक नांशाफी हो सकती है । कमाल कि बात है न कि कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं है , वो भी तब जब राष्ट्रपति महिला है , प्रधानमंत्री से शक्तिशाली भी एक महिला है । ये तो तभी पता चल गया था कि किरण बेदी को अब जबरन ही रास्ते से हटा दिया जाएगा जब दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद पर उमको नहीं बैठने दिया गया। यही तो फर्क है और हमेशा रहेगा हममें और पच्शिमी देशों में । अव्वल तो वहाँ कि सरकार और प्रशाशन इतनी हिम्मत ही नहीं कर पाते और यदि गलती से कर भी लेते तो वहाँ की जनता उन्हें चैन नहीं लेने देती। कहिर किरण बेदी ने जो करना है वो तो करेंगी ही और ऐसे लोग कभी किसी बात के मोहताज नहीं होते।


दूसरी खबर इतनी अप्र्तायाषित और झकझोर देने वाली थी कि समझ ही नहीं पाए कि आकहिर ये क्या सुन रहे
हैं । बेनजीर कि असमय हत्या ने इंदिरा गांधी और राजीव जी की हत्या की बात याद दिला दी। लेकिन सबसे मुश्किल बात तो ये है कि आने वाले समय में पाकिस्तान कि हालत और भी बदतर होने वाली है । और ये बहुत बड़ी चिंता कि बात है कि हमारे पड़ोस में एक ऐसा देश पनप रह तो बहुत जल्दी जलने वाला है । देर सबेर उसकी लपटें हम तक भी पहुचने वाली हैं ही। मेरी मानें तो भारत सरकार और भारतीया सेना को अभी से पूरी तरह सतर्क हो जाना चाहिए । खैर हमें उस देश के लोगों से गहरी संवेदना है जो बेचारे ये सब झेलने को ना जाने कब से अभिशप्त हैं।

आज इससे अलग कुछ लखन को मन नहीं कर रहा है

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