कुछ समय पहले एक कविता पढी थी जो मन मष्तिष्क पर छाप सी गयी थी, उस कविता में मैंने अपनी माँ को पाया था, रंजना श्रीवास्तव जी द्वारा लिखी गयी कविता जब भी पढता हूँ मेरी आँखें नम हो जाती हैं......आप भी पढिये.....
माँ अंगीठी थी,
जिस पर पकता था खाना,
और जीमते थे परिवार के लोग,
माँ कुछ नहीं बोलती थी,
जब फूलती थी रोटियाँ,
उसकी लपट और आंच पर,
माँ के धधकने के इतिहास से,
अनजान थे परिवार के लोग,
उसके ताप और उष्मा की,
अन्तरंग दुनिया में,
एक स्त्री का राख हो जाना तय था,
पिता को गर्व था,
माँ के इस राख होते जाने पर,
उन्हें कहाँ पता था ,
की राख हो जाने के लिए,
आग जैसा जीवन,
जीती हैं स्त्रियाँ............
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंरंजना की इस कविता ने निश्चय ही संवेदित किया । नम हो गयीं आखें, भींग गया मन ।
जवाब देंहटाएंअजय जी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आलेख मां के सन्दर्भ में पढ़कर मुझे अपनी मां की याद आ गई और मेरी आंखे नम हो गई है . दुनिया में मां से बढाकर कोई और प्यार दुलार नहीं दे सकता है . मां को प्रणाम और सलाम करता हूँ .
मां तूने दिया हमको जन्म
जवाब देंहटाएंतेरा हम पर अहसान है
आज तेरे ही करम से
हमारा दुनिया में नाम है
हर बेटा तुझे आज
करता सलाम है
पिता को गर्व था,
जवाब देंहटाएंमाँ के इस राख होते जाने पर,
उन्हें कहाँ पता था ,
की राख हो जाने के लिए,
आग जैसा जीवन,
जीती हैं स्त्रियाँ............
वाह.....!!
लाजवाब अभिव्यक्ति .....!!
आपने एक स्त्री मन को इतने करीब से पहचाना ...नमन आपको ....!!