बस्तियां खाली करवाने को ,वो अक्सर उनमें ,आग लगा देते हैं ॥उतनी तो दुश्मनी नहीं कि ,कत्ल कर दें मेरा , इसलिए ,रोज़ , ज़हर ,बस ,ज़रा ज़रा देते हैं ॥मैंने कब कहा कि , गुनाह को ,उकसाया उन्होंने , वे तो बस ,मेरे पापों को , थोडी सी,हवा देते हैं ॥वो जब करते हैं गुजारिश ,अपने घर आने का,हर बार जाने क्यों ,इक नया पता देते हैं ॥मैं ठान लेता हूं , कई बार ,अबकि नहीं मानूंगा ,नई अदा से वो , मुझको,हर बार लुभा लेते हैं ॥जख्मों से अब दर्द नहीं होता ,कोई टीस भी नहीं ,पर जाने क्यों जखमों के,निशान रुला देते हैं ॥जब भी जाता हूं गांव अपने ,ऐसी होती है , खातिर मेरी ,अपने ही घर में मुझे सब ,मेहमान बना देते हैं ॥सिलसिला टूटता नहीं ,उनपर ,मेरे विश्वास का , पुरानी को छोड,रोज़ एक नई ,कहानी सुना देते हैं ॥
प्रचार खिडकी
रविवार, 1 अगस्त 2010
अपने ही घर में मुझे सब , मेहमान बना देते हैं............अजय कुमार झा
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हिन्दी कविता
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
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बेहद उम्दा और संवेदनशील अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंकल (2/8/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
@ ज़हर ,बस , ज़रा ज़रा
जवाब देंहटाएं,मेरे पापों को , थोडी सी,हवा
हर बार जाने क्यों ,इक नया पता
अपने ही घर में मुझे सब ,मेहमान बना देते हैं ॥
पुरानी को छोड,रोज़ एक नई ,कहानी सुना देते हैं
आज तो गुरू जुलम ढा दिए जुलम ! और क्या कहें?
जब भी जाता हूं गांव अपने ,ऐसी होती है , खातिर मेरी ,अपने ही घर में मुझे सब ,मेहमान बना देते हैं ॥
जवाब देंहटाएंजब घर में विशेष खातिरदारी हो तो सच ही घर बेगाना स लगने लगता है....
और आज दोस्ती वाले दिन यह बात ?
उतनी तो दुश्मनी नहीं कि ,कत्ल कर दें मेरा , इसलिए ,रोज़ , ज़हर ,बस ,ज़रा ज़रा देते हैं
बहुत संवेदनशील रचना है ..
भई वाह , सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंअच्छी और संवेदनशील रचना ।
जवाब देंहटाएंअब क्या कहे हम , हम खुद भुगत भोगी रह चुके है जी... बहुत सुंदर लगी आप की कविता.धन्यवाद
जवाब देंहटाएंउम्दा और संवेदनशील अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमित्र दिवस की शुभकामनाये ....
बेहद उम्दा रचना ........ मित्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंवाह आप तो कविताएं भी गद्य जितनी ही अच्छी लिखते हैं.
जवाब देंहटाएंउतनी तो दुश्मनी नहीं कि ,
जवाब देंहटाएंकत्ल कर दें मेरा , इसलिए ,
रोज़ , ज़हर ,बस ,
ज़रा ज़रा देते हैं.
गज़ब ..
जख्मों से अब दर्द नहीं होता ,कोई टीस भी नहीं , पर जाने क्यों जखमों के,निशान रुला देते हैं ..
क्या बात है ...!
जब भी जाता हूं गांव अपने ,
जवाब देंहटाएंऐसी होती है , खातिर मेरी ,
अपने ही घर में मुझे सब ,
मेहमान बना देते हैं ॥ दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई
जब भी जाता हूं गांव अपने ,
जवाब देंहटाएंऐसी होती है , खातिर मेरी ,
अपने ही घर में मुझे सब ,
मेहमान बना देते हैं ॥
क्या बात है अजय जी. बहुत-बहुत सुन्दर रचना. मित्रता-दिवस मुबारक हो.
बेहतरीन कविता... बहुत भाई मन को..
जवाब देंहटाएंवो जब करते हैं गुजारिश ,
जवाब देंहटाएंअपने घर आने का,
हर बार जाने क्यों ,
इक नया पता देते हैं ॥
नहीं एक केवल यही नहीं आज तो आपने कहर ढ़ा दिया है -सच्ची जुलुम!
(कहीं से उडाई तो नहीं है -हा हा हा )
बहुत उम्दा और गहन रचना...बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंलोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में,
जवाब देंहटाएंतुम्हे शर्म नहीं आती बस्तियां जलाने में...
- बशीर बद्र
जय हिंद...
जख्मों से अब दर्द नहीं होता ,
जवाब देंहटाएंकोई टीस भी नहीं ,
पर जाने क्यों जखमों के,
निशान रुला देते हैं ॥
वाकई :-(
बी एस पाबला
बहुत संवेदना भरी है आपने. बधाई।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना................संवेदनाओं का सजीव चित्रण........
जवाब देंहटाएंbahut khoob likha hai aapne...
जवाब देंहटाएंMeri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
आप जैसो का ही है हमको भरोसा,
जवाब देंहटाएंवर्ना उन लोगो की कमी नहीं 'मजाल'
जो शायरी को मजाक बना देते है!