प्रचार खिडकी

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

जालियांवाला बाग में बिताए कुछ घंटे .....


कल देर रात को अनुज समान मित्र शिवम मिश्रा जी का फ़ोन आया । उन्होंने याद दिलाया कि आज यानि तेरह अप्रैल वही दिन है जब जालियांवाला बाग नरसंहार हुआ था और चूंकि मैं हाल ही में वहां सपरिवार गया हुआ था इसलिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए आज के दिन से उपयुक्त और क्या हो सकता है । मैंने उन्हें ये कहते हुए धन्यवाद दिया कि हिंदी ब्लॉगजगत को इस बात के लिए अवश्य ही गर्व होगा कि वे ऐसे कुछ गिने चुने ब्लॉगरों में से एक हैं जो हमेशा ही अपने विचारों , अपने लेखों और पोस्टों से न सिर्फ़ देशभक्ति का जज़्बा जगाए रखते हैं बल्कि मुझ जैसे बहुत से ब्लॉगर मित्रों /सखाओं को आज के दिन भी कृतघ्न बने रहने से बचा लेते हैं । 


जालियांवाला बाग से मेरा परिचय इतना पुराना है कि बस एक धुंधली सी याद ही थी । पिताजी की फ़ौज की नौकरी के दौरान फ़िरोज़पुर में नियुक्ति के समय ही हम सपरिवार जालियांवाला बाग गए थे । मुझे सिर्फ़ एक ही चीज़ याद थी और वो था , शहीदी कुंआं जो तब सिर्फ़ एक कुंआ ही था , बिल्कुल खुला और कुंए जैसा । इसलिए पिछले वर्ष जब  अमृतसर का कार्यक्रम बना तो मैं ये सोच के रोमांचित और उत्तेजित हो गया कि इतिहास एक बार अपने आपको फ़िर से दोहरा रहा था शायद । मेरा पुत्र भी लगभग उसी समय उस पावन स्थल के दर्शन करने जा रहा था जिसके मैंने शायद इसी उम्र में किए थे । पत्नी का गृह राज्य पंजाब होने के बावजूद अभी तक वो भी इसे देखने से वंचित थी सो ये और भी पक्का हो गया । 

इससे पहले कि जालियांवाला बाग में प्रवेश करूं कुछ बातें जो तब और अब भी मेरे दिमाग में घूम रही थीं वो कुछ इस तरह की थीं । हमें अपने देश पर बलिदान होने वालों को अपनी स्मृति में बसाए रखने , ताउम्र उनकी कृतज्ञता  मानने और इस तरह की तमाम भावनाओं को नि:संदेह पश्चिमी देशों से सीखना चाहिए तो आज भी इन मामलों में हमसे कहीं आगे और अनुकरणीय हैं । आज देश के कर्णधारों और निर्लज्जता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुके उन तमाम राजनेताओं से क्या उम्मीद की जा सकती है जो सुना है कि भगत सिंह , सुखदेव को भी आज की जाति धर्म , भाषा की छिछली राजनीति में घसीटने में लगे हैं । 


मुझे जालियांवाला बाग के अंदर जाते समय एक बात और जो ध्यान आई वो ये कि ब्रितानी सरकार जो पूरे विश्व को सभ्यता और संस्कार उसकी महारानी सालों के बाद भी जब उस जालियांवाला बाग में आती है या उस साम्राज्य का युवराज उस स्थल को देखने आता है तो शर्मिंदगी और माफ़ी की जगह पर यदि ये कह कर निकल जाता है कि वहां उस दिन नरसंहार में मरने और घायल लोगों की संख्या को बढा चढा कर बताया दिखाया गया है तो या तो तो भारत सरकार को उसे धक्के मार के निकाल देना चाहिए थी या खुद भी उस दिन शर्म से डूब मरना चाहिए था । लेकिन सरकार तो राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के बहाने अब भी उनके तलुवे चाटने का कोई मौका नहीं चूकती । ऐसी स्थिति में तो यही विकल्प बचता है कि अगर हम वाकई चाहते हैं कि हमारी आने वाली नस्लें भी इतनी ही संवेदनहीन न हो जाएं तो यकीनन उन्हें ये बताते रहना होगा कि ये और देश भर में इन जैसे तमाम स्थलों का भारत को ऋणी रहना चाहिए चिर काल तक क्योंकि ये आजादी उन्हीं के बलिदानों के कारण मिली है । 

 कुछ यादों के पन्ने से ..................


मुख्य द्वार 

सूचना पट्टिकाएं 

अंदर घुसते ही सामने बना हुआ छोटा सा आश्रय स्थल 

भीतर का अहाता जिसे अब सीमेंटेड कर दिया गया है 

जालियां वाला बाग द्वार के साथ ही बना संग्राहलय 



अमर ज्योति 

शहीदों को समर्पित ज्योति की लौ 

अंखंड अमर ज्योति 

अमर ज्योति के नीचे शिलापट्ट

 विश्राम स्थल 

दूर चमकता शहीद स्तंभ 

शहीद स्तंभ 

जालियांवाला बाग ....का बाग 

बाग का मनोहारी दृश्य 



संग्रहालय से लेकर शहीदी कुएं तक जाने के लिए बना आकर्षक कॉरीडोर 

संग्रहालय में लगे चित्र जिनके लिए लिखा था कि चित्र खींचना मना है मगर जब तक मुझे टोका गया तक मोबाईल अपनी आदत के अनुसार काम कर चुका था


हालांकि मुझे तब और तब से लेकर अब तक ये नहीं समझ में आया कि आखिर किस वजह से या किन वजहों से ऐसा कहा गया कि हमें अपने ही शहीदों और उनकी तस्वीरों , उनसे जुडी जानकारियों समाचार पत्रों की छवियों की तस्वीर खींचने से रोका गया , हो सकता है कि कुछ विशिष्ट कारण रहे हों । 

सुदूर दक्षिण राज्यों से आया हुआ बच्चों का एक दल जिन्हें विशेष रूप से जालियांवाला बाग घुमाने के लिए लाया गया था 

बाग के अंदर घूमते विभिन्न प्रांतों से आए हुए लोग 

संग्राहलय के अंदर बना हुआ विशालकाय चित्र जो उस दिन हुए नरसंहार को प्रतिबिंबित कर रहा है 

इस चित्र के आगे खडे होकर आप एक पल के लिए उस दिन को अनुभव कर सकते हैं और यकीनन ये आपको सिहरा के रख देगा 

शहीदी कुंआं , जिसे अब एक स्मारक का रूप दे दिया गया है 

कुंए के भीतर झांकते गोलू जी और पुत्री बुलबुल अपनी मां के साथ 

कुंए को चारों तरफ़ से जाल लगा के बंद कर दिया गया है अब 

कुंए के अंदर का एक दृश्य 


इस कुंएं में झांकते हुए जब मैंने श्रीमती जी को पूरा बात बताई तो वे सिहर उठीं थीं और उनकी आंखों के कोर से ढुलकता आक्रोश बहुत कुछ कह गया था । सच कहूं तो मुझे अच्छा लगा था कि वे भी ठीक वैसा ही महसूस करती हैं जैसा कि मैं । 
ये वही जगह है जहां खडे होकर जनरल डायर ने बाग में मौजूद हजारों निर्दोष लोगों पर गोलियां बरसाईं थीं 

पुत्र आयुष गौर से पढते हुए 
 पुत्र आयुष और साथ में ही घूमने आया  साढू साहब के साहबजादे जॉनी , ने उन चार घंटों में लगातार एक के बाद एक प्रश्नों की झडी लगाकर मुझे इतिहास के उन पन्नों को फ़िर से पढने और याद करने पर मजबूर कर दिया जिन्हें कभी स्कूल कॉलेज में पढकर हम उत्तेजित हो जाया करते थे । मैंने उन्हें एक एक बात जो मुझे उस समय याद थी सब सुनाई और बताई उधम सिंह तक 
द्वार पर स्थित अहाता 



उस दिन शहीद हो उन तमाम आत्माओं को नमन कि आज हम चैन की सांस ले पा रहे हैं । आजाद सोच  के साथ जी पा रहे हैं , लिख पा रहे हैं , पढ पा रहे हैं ....उन्हें शत शत नमन 

11 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी पोस्ट. सुन्दर चित्रों के जरिये अपनी भी यात्रा हो गयी. झा जी अब इस टोकरी में माल आना कम हो गया है. क्या ब्लोग्गिं में रूचि कम हो गयी है.

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  2. बहुत अच्छी पोस्ट ...आपके यह चित्र पहले भी देखे थे ..बहुत सुन्दर हैं ...

    बैसाखी की शुभकामनायें

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  3. अभी-अभी समाचार पढ़कर बहुत आघात हुआ और दुःख पहुंचा. शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन परिवार अजय कुमार झा जी के पिताश्री को श्रद्धाँजलि अर्पित करते हुए परमपिता परमात्मा से दिवंगत की आत्मा को शांति और शोक संतप्त परिजनों को यह आघात सहन करने की शक्ति देने की प्रार्थना करता है.दुःख की इस घडी में हम सब अजय कुमार झा जी के साथ है.

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  4. धन्यवाद...
    इस यात्रा में सहभागिता करवाने के लिए...
    वहां जाने की लंबित आकांक्षा में ऊफान आ गया है...

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  5. ओह...
    सिरफिरा जी की सूचना से आघात पहुंचा...
    विनम्र श्रृद्धांजलि...

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  6. चित्रों के माध्यम से बहुत कुछ कह गये आप्…………शहीदों को नमन करने के सिवाय और हम सब कर ही क्या सकते हैं।

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  7. देश और समाजहित में देशवासियों/पाठकों/ब्लागरों के नाम संदेश:-
    मुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?

    मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
    आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

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  8. मैं शिवम भईया को इसलिए पसंद करता हूँ..उनके ब्लॉग पे आपको इतनी जानकारियां मिलती हैं, देशप्रम और शहीदों के लिए उनकी भावना किसी से छुपी नहीं है....हैट्स ऑफ टू शिवम भैया..

    और अजय भईया अब आपके लिए..
    ये पोस्ट पे मैं क्या कहूँ बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा ....बस आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस पोस्ट को पढवाने के लिए....

    इतने दिनों बाद तक ये पोस्ट कैसे मेरी नज़रों से बची रह गयी?? :(

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  9. बेशर्मी की हद है। क्षुद्र स्वार्थों के लिए लोग जो न करें।

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  10. दोस्तों, क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना.........
    भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से (http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/04/blog-post_29.html )

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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