अब, खतों का मेरे , कोई जवाब नहीं देता.....
|
कवि जी , इन कविताई पोज़ |
हां ,बदल ही गया होगा दस्तूर जमाने का ,
अब ,खतों का मेरे , कोई जवाब नहीं देता ॥
सयाने हुए हैं सारे , अब जरूरत नहीं होती,
यही वजह है कि , तोहफ़े मे अब कोई किताब नहीं देता ॥
अब कहां , कशिश बची है मोहब्बत की ,
किताबों में रखने को , कोई अब गुलाब नहीं देता ॥
दूसरों की खामियां देखते , उम्र गुजर जाती है ,
अपने गुनाहों का , खुद कोई क्यों हिसाब नहीं देता ॥
दुश्मन ही है वो , कैसी पडोसी मान लें ,
जो होता पडोसी , तो हर साल एक नया "कसाब " नहीं देता ॥
हर कोई दिखाता है रुतबा अपनी पहचान और ओहदे का
सच्चा और ईमानदार ही बस , अपना रुआब नहीं देता ॥
काफी जल्दी बहुत कुछ सुधर गया है.कविता लिखना यानी अपने दिल को जस का तस परोस देना है.इसलिए अगर बिना तुक वाली कविता है तो भी अच्छी लगती है,बस उसमें प्रवाह होना चाहिए !
जवाब देंहटाएंभाई,इसे रद्दी की टोकरी में डालने में हमें आपत्ति है !
अरे वाह! बहुत बढ़िया ....
जवाब देंहटाएंहा हा हा संतोष भाई , इस बात पर तो हमें पहले भी डांट पड चुकी है चलिए सोचते हैं कुछ नया सा नाम फ़िर इसके लिए भी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे कविता है. मेरे लिहाज से जिस लेखन मे दिमाग से दिमाग तक का प्रवाह हो वह गद्य है और जिसमे दिल से दिल तक का प्रवाह हो वह कविता है . बहुत अच्छे.
जवाब देंहटाएंअद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
जवाब देंहटाएंक्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.
जवाब देंहटाएंनज़्म तो बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएं@ कवि जी , इन कविताई पोज़
दर्शक/श्रोता को पीछे क्यूं बिठा रखा है? :)
पैसे लेता है अमेरिका से पर हिसाब नही देता
जवाब देंहटाएंअब कहां , कशिश बची है मोहब्बत की ,
जवाब देंहटाएंकिताबों में रखने को , कोई अब गुलाब नहीं देता ॥
दूसरों की खामियां देखते , उम्र गुजर जाती है ,
अपने गुनाहों का , खुद कोई क्यों हिसाब नहीं देता ॥
बहुत खूब ... सारे ही सार्थक प्रश्न एक साथ कर दिए ..
दूसरों की खामियां देखते , उम्र गुजर जाती है ,
जवाब देंहटाएंअपने गुनाहों का , खुद कोई क्यों हिसाब नहीं देता ॥
....
लाज़वाब प्रस्तुति..
दूसरों की खामियां देखते , उम्र गुजर जाती है ,
जवाब देंहटाएंअपने गुनाहों का , खुद कोई क्यों हिसाब नहीं देता ॥
देखा जाए तो हर पंक्ति अर्थपूर्ण..
पहली पंक्ति से लेकर आखिरी पंक्ति तक ....सब लाजबाब
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...गहरे अर्थ लिए आपकी प्रस्तुति ....सच में बहुत खूब
ईमानदार और सच्चे इंसान के पास ही तो रुतबा नहीं होता वो दिखायेगा. बाकी दिखाने के लिए बहुत हैं सारी दुनियाँ ही है. अपने गुनाहों का हिसाब किसी के पास नहीं.
जवाब देंहटाएंबहुत आकर्षक ढंग से शिकायत भी कर ली और साफ बच निकले.
प्रभावी अभिव्यक्ति......
जवाब देंहटाएंहर कोई दिखाता है रुतबा अपनी पहचान और ओहदे का
जवाब देंहटाएंसच्चा और ईमानदार ही बस , अपना रुआब नहीं देता ॥
बहुत बढ़िया.....कमाल की पंक्तियाँ ...
vah..
जवाब देंहटाएंsaari panktiyan ek se badh kar ek hai..
हां ,बदल ही गया होगा दस्तूर जमाने का ,
जवाब देंहटाएंअब ,खतों का मेरे , कोई जवाब नहीं देता ॥...अब कोई किसी को ख़त नहीं लिखता , मोबाइल का ज़माना है और अब उसमें भी नेटवर्क का बहाना है
अब कहां , कशिश बची है मोहब्बत की ,
जवाब देंहटाएंकिताबों में रखने को , कोई अब गुलाब नहीं देता ॥
दूसरों की खामियां देखते , उम्र गुजर जाती है ,
अपने गुनाहों का , खुद कोई क्यों हिसाब नहीं देता ॥
बहुत खूब !...... हरेक शेर लाज़वाब..
bhut hi khubsurati se shabdo ko tarasha hai apne...
जवाब देंहटाएंहर कोई दिखाता है रुतबा अपनी पहचान और ओहदे का
जवाब देंहटाएंसच्चा और ईमानदार ही बस , अपना रुआब नहीं देता ॥
wah bahut khoob ...!!