प्रचार खिडकी

रविवार, 24 नवंबर 2013

चलो लगाएं कोई नया सा इल्ज़ाम फ़िर










कभी नहीं चली है ,मुद्दों की सियासत इस देश में ,
चलो इक दूजे पर लगाएं कोई नया सा इल्ज़ाम फ़िर ॥
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क्यूं खिलाफ़ किया जाए किसी को, किसी का अच्छा बोलकर,
देखो जरा ऊंची गर्दन किसी की ,उसे फ़ौरन करो बदनाम फ़िर॥
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उन्हें बंदूक और बारूद की भाषा है मालूम ,बस जिन्हें ,
तुम पता नहीं क्यूं हर बार भेजते हो इश्क के पैगाम फ़िर॥
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तुम्हें पता है वो डर की ताकत जानते हैं , डराएंगे ही ,
तुम आगाज़ जब तेज़ाब सी करते हो,क्यूं सोचते हो अंजाम फ़िर ॥
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ये मत कहिए कि पहले ऐसा कभी हुआ ही नहीं गुनाह देश में ,
हां ये जरूर है कि जो हुआ पर्दे में ,अबकि हुआ है सरेआम फ़िर ॥
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इस देश में लडाने को बहुत से बहाने हैं सियासतदानों के पास,
देखो उसी धर्म मज़हब के नाम पर लडते हैं ,रहीम और राम फ़िर ॥
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जिस लोकतंत्र की दुहाई देकर तुमने ये रियासत टिका रखी है ,
अगर यही है वो तो अभी के अभी बदल डालो इसका नाम फ़िर॥
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कभी कुहासे और ओस से भीग जाती थीं सांझ की चूनर ,
बदला रूत मगर धुंएं से हुई है धुंधली, शहर की शाम फ़िर ॥
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1 टिप्पणी:

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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