प्रचार खिडकी

शनिवार, 5 जनवरी 2008

ये ब्लोगिए चाहते क्या हैं ............

पिछले कुछ दिनों तक ब्लोग जगत पर समय बिताने के बाद जो महसूस किया वही लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। आप सबको कैसा लगेगा मुझे नहीं पता। और हाँ यदि इससे किसी को भी कोई कष्ट पहुंचता है तो उसके लिए मुझे अग्रिम क्षमा करें क्योंकि मेरा मकसद सिर्फ अपने अनुभवों को आपसे बाटना है । आप उससे कितने सहमत हैं या बिल्कुल असहमत ये तो आपकी मर्जी। मेरे ख्याल से तो नीचे लिखी यही वो बातें हैं जो कि कोई भी ब्लॉगर चाहता है :-


ब्लोग पर ढेर सारी बातें : दरअसल इतना समय बीत जाने के बाद भी ब्लोग्गिंग आज भी कम से कम भारत में तो कुछ नया और अजूबा ही है। इसलिए जो भी इससे जुडे हैं या वे जो जुड़ना चाहते हैं ये वे भी जो ब्लोग में रूचि रखते हैं वे सभी चाहते हैं कि ब्लोग्गिंग की बातें होती रहे। अब देखिए ना जब भी मैंने ब्लोग या उससे संबंधित किसी विषय पर कुछ भी लिखा है उसको पढ़ने की इच्छा सबने दिखाई है। हमारे बडे चिट्ठाकार तो इसपर भी नज़र रखे हुए रहते हैं कि ब्लोग जगत के बारे में कहाँ क्या लिखा पढा जा रहा है। यानी कि ब्लोग की बातें ब्लोग पर बातें सभी को पसंद आती हैं।


टिप्पणियाँ : अजी इसकी चाहत किसे नहीं होती । ये तो ऐसा तोनिक है कि यदि आमिर खान और बिपाशा बासु के ब्लोग को भी नहीं मिलता तो ये बेचारे कब का लिखना छोड़ चुके होते। हर ब्लोगिया चाहता है कि वो चाहे कुछ भी लिखे उसपर टिप्पणियाँ तो आनी ही चाहिए। खासकर नए और हमारे जैसे छोटे छोटे नौसिखिये ब्लॉगर तो इसी आस में अपने पुराने पोस्टों को भी कई कई बार खोल खोल कर देखते हैं। और फिर एक ये बात भी है कि यदि मेरे जैसे ब्लोगिए कि किसी पोस्ट पर अविनाश जी, आलोक जी, मीनाक्षी जी, शास्त्री जी, मिश्रा जी जैसे बडे लोग कभी टिप्पणी कर दें तो ख़ुशी के मारे मिर्गी के दौरे तक पद सकते हैं । पता नहीं उन्हें इस बात का अंदाजा है या नहीं। तो ये तय रहा कि दुसरी सबसे पसंदीदा बात जो हर ब्लोगिए को अच्छी लगती है वो है टिप्पणियाँ।

प्रशंशा :- जी हाँ प्रशंशा, मगर ये तो ब्लोगिए क्या हर इंसान बल्कि जानवर को भी पसंद आती है। मगर मेरे कहने का मतलब ये है कि आलोचना कि तुलना में प्रशंशा सबको ज्यादा भाती है । और कई लोग तो इतने जलेभुने बैठे होते हैं कि वो बेचारे कोम्प्लेक्स के मारे कभी किसी की प्रशंशा ही नहीं कर पाते हां आलोचना में उन्हें जन्मजात महारत हासिल होती है। अब मेरी एक पोस्ट पर एक मित्र ने लिखा ," वह क्या बकवास लिखा आपने मगर मैं पढ़ कर टिप्पणी कर रहा हूँ।" पढ़ने के बाद मेरे मन में जो बात आयी " वाह सरकार क्या भीगा भीगा कर मरा है , मज़ा आ गया। " मगर खबरदार आप सबकी आलोचना नहीं कर सकते , लेकिन यकीनन प्रशंशा कभी भी किसी की भी कर सकते हैं।

पैसा कमाना : - क्या कहा पैसा कमाना । तो क्या ब्लोग्गिंग से पैसा भी बनाया जा सकता है । जी हाँ , बिल्कुल यही प्रतिक्रिया थी मेरी जब मुझे ये पता चला कि ब्लोग्गिंग को एड जगत के साथ जोड़ कर उससे पैसा कमाया जा सकता है , बल्कि कई महारथी तो इसमें घुस कर इसे व्यावसायिक ब्लोग्गिंग का रुप दे चुके हैं। मगर अफ़सोस ना तो ये सभी को पता है ना ही ये सभी से संभव है। मेरे एक मित्र ने बताया कि इसके लिए आपको अंगरेजी में लिकना पडेगा। मैंने वहीं पर आत्मसमर्पण कर दिया । क्या पैसों के लिए अंग्रेजी में लिखना शूरोऊ कर दूं और फिर मेरी अंग्रेजी तो भैया अंग्रेजों को बड़ी मुश्किल से ही समझ आयेगी। खैर, कहने का मत्लन ये कि ब्लोग लिख कर पैसा कमाना भी हर ब्लोगिए को जरूर पसंद आता है।

अग्ग्रेगातोर्स के मुख्य पृष्ट पर हमेशा अपनी एक पोस्ट दिखती रहे। मुझे हमेह्सा ये लगता है कि जब भी कोई भी चिटठा संकलक का mukha पृष्ट kholoon हमेशा कम से कम एक पोस्ट तो मेरी dikhnee ही चाहिए भाई। aakhirkaar tabhee तो सब को पता chalegaa कि मैं भी ब्लोग्गिंग kartaa हूँ।


बस यही सब वे बातें हैं जो मुझे लगता है कि हरेक ब्लॉगर चाहे वो बड़ा हो या छोटा जरूर पसंद करता है । इस नए वर्ष में अपनी तो यही चाहत है कि मोहल्ला उर कस्बा बसा रहे , लिंकित मन पर मेरा प्रतिबिम्ब बँटा रहे, कहानिया बुनी जाती रहे, शास्त्री जी के नुस्खे मिलते रहे, तरकश के बानो से नुक्ताचीनी होते रहने के बावजूद विनयपत्रिका निरंतर चपटी रहे, और हँसते हुए कोई भी ब्लॉगर ब्लोग जगत के इस आलोक से नौ दो ग्यारह ना हो।

जय हो ब्लोग जगत की।
बस आपका

अजय कुमार झा
फोन ९८७१२०५७६७।

अगली पोस्ट का विषय :- कभी अपनी पुरानी पोस्टों को पढ़ कर देखा है क्या ?

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय अजय आपने कई मुद्दे उठाये हैं जिनमें से एक पर कुछ जानकारी जोडना चाह्ता हूँ, वह है ब्लाग का व्यावसायिक रूप.

    आजकल अंग्रेजी चिट्ठों को विज्ञापन अधिक मिलता है, लेकिन अब हिन्दी चिट्ठों को भी मिलने लगा है. इसे मैं बहुत अच्छी बात समझता हूँ.

    "अर्थ" तो जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है एवं यदि मोक्ष के आडे ना आये तो अर्थ तो बहुत अच्छी चीज है.

    चिट्ठाकरी के आर्थिक पहलुओं पर जल्दी ही सारथी पर एक लेखन परंपरा आने वाली है -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
    मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
    लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

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  2. अजय भाई हम भी आपको टिपिया रहे हैं और महसूस कर रहे हैं कि आपको बडी खुशी हो रही होगी, हमें तो बहुत होती है दिन में पोस्‍ट वाले दिन दो चार बार तो रिफ्रेश कर के देख ही लेते हैं कि किसी की टिप्‍पणी आई क्‍या ? पर संतुष्टि तभी होती है जब कोई सचमुच में हमारे ब्‍लाग को पढकर हमें सार्थक सलाह देते हैं ।

    आरंभ

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  3. बहुत सही और सच्ची बात लिखी है।टिप्पणी ,प्रशंसा,और पैसा यही तो चाहते हैं ज्यादातर ब्लोगर।अच्छा लेख है।

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  4. सबसे प्रमुख कारण मन की भड़ास निकालना है.

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  5. आपके ब्लाग पर आया पर मुझे बिन्दु ही दिखाई दिया क्या कारन है बतायें
    sheikhsahebali@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  6. @मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
    लेखकों को प्रोत्साहन देंगे.....सत्य वचन

    जवाब देंहटाएं
  7. We are urgently in need of KlDNEY donors for the sum of $450,000 USD, WhatsApp or Email for more details:
    hospitalcarecenter@gmail.com
    WhatsApp +91 779-583-3215

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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