प्रचार खिडकी

सोमवार, 28 जनवरी 2008

सड़ गया है इलेक्ट्रोनिक मीडिया का थिंक टंक

कल समाचार चैनलों पर एक खबर थी। अमिताभ बच्चन सपरिवार उत्तर प्रदेश के किसी जिले में किसी विद्यालय की नींव रखने पहुंचे थे। पूरे दिन और देर रात तक सभे टी वी चैनलों ने इस खबर को घोंट घोंट कर बिल्कुल लस्सी की तरह बना कर रख दिया। मगर अब ज़रा इसकी प्रस्तुति पर भी गौर फर्मायिए।
" ये जो धुएं का गुब्बार आप देख रहे हैं , ये उस हेलिकोप्टर के उतरने का है जिसमें बच्चन परिवार उतर कर विद्यालय की नींव रखने पहुंचा है। इसके बाद हेलिकोप्टर के उतरने और उससे गुब्बार उठने के बीच अटूट संबंध को विस्तारपूर्वक समझाया गया।

ये क्या है भाई, क्या यही पत्रकारिता है? किसने कहा था कि आप चौबीसों घंटे समाचार देने वाला चैनेल खोलो और वो भी दर्ज़नों चैनेल? आज कहाँ जा रही है ये तेलेविजनपत्रकारिता, यार ये खबरें हैं आपके पास हमें दिखाने को , कभी कोई चुडैल को एक्स्क्लुसिवे बना रहा है तो कोई किसी अश्लील पार्टी को एक्सक्लूसिव बना कर पेश कर रहा है। मैं मानता हों कि वैश्विक जगत की पत्रकारिता के स्तर तो दूर उसके मर्म तक भी यहाँ के मीडिया जगत का पहुंचना लगभग नामुमकिन है , मगर कम से कम इतना स्तरहीन तो ना ही बनो कि कि पता ही ना चले कि ये पत्रकारिता है या कि बाज़ार लगा है जिसमें समाचारों को अलग अलग फ्लेवर और तडके के साथ बेचा जा रहा है। निस्संदेह आज जो हो रहा है वो यही है।

कहाँ है वो थिंक टंक जो लगातार मंथन और अन्वेषण से बताते थे कि अगला विषय , अगला क्षेत्र , ये कि अगला वो कौन सा मुद्दा होगा जिस पर अपनी सारी उर्ज़ा और सारा समय, सारा श्रम लगा कर कुछ ऐसा निकाल कर लाना है जो वाकई एक खबर हो, एक जानकारी हो जिसके बारे में सबको पता होने के बावजूद सबकी तवज्जो उस तरफ ना गयी हो। क्यों आज कोई खबर कोहिमा के जंगल , चम्बल के बीहड़, अंधरा के किसी कसबे से , तमिलनाडु के किसी तट से, बिहार के किसी कोने से , जम्मू की किसी घाटी से और पूरे भारत से ऐसी खबरें ऐसे समाचार लाता है कि जिसे सच्चे मायनों में समाचार कहा जा सके। अफ़सोस कि आज कोई भी ऐसा नहीं है जो इस गलाकाट बाजारीकरण के दौर में खुद को इस प्रवाह में पड़ने से रोक सके.हालांकि अफ़सोस तब और अधिक बढ़ जाता है जब येपता चलता है कि आज भी कई विदेशी प्रसारण जैसे बीबीसी , वी ओ ई , आदि हमारे बारे में हमारे देशी खबरिया चैनलों से ज्यादा घम्भीर और जिम्मेदार पत्रकारिता कर रहे हैं।

आने वाली नयी नस्ल की पत्रकारिता और पत्रकारों को देख कर तो ये चिंता और भी अधिक बढ़ जाती है। कुकुरमुत्तों की तरह टी वी चैनलों वो भी समाचार चैनलों ने तो समाचार को बिल्कुल अचार कि तरह बना कर छोड़ देंगे। भैया अब भी संभल जाओ, क्योंकि मुसीबत तो ये भी है कि आपको खुद ही संभलना पडेगा.कोई दूसरा ये काम नहीं कर सकता।

2 टिप्‍पणियां:

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...