प्रचार खिडकी

शनिवार, 8 मार्च 2008

आओ , खेलें, महिला दिवस-महिला दिवस.

सच कहते हैं भाई की दुनिया गोल है । अजी मेरे विचार से सिर्फ़ दुनिया नहीं बल्कि सब कुछ गो है तभी टू शायद हम घूम फ़िर कर वहीं पहुँच जाते हैं। अभी तो साल ठीक से शुरू भी नहीं हुआ , बसंत खिला नहीं, गुलाल उड़ा नहीं, मगर खेल सारे शुरू हो गए हैं। अभी क्रिकेट का खेल ख़त्म हुआ और सब महिला दिवस-महिला दिवस , खेलने लगे। नहीं जी ये हमारे खो-खो और गुल्ली-डंडे जैसा छोटा मोटा खेल नहीं है , ये तो अंतर्राष्ट्रीय लेवल का खेल है। जी हां ये अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है।

हां, हाँ, हमें पता है आप कहेंगे की जब इस देश की पहली महिला आई पी एस के साथ अन्याय होते रहने के बावजूद पूद्रे देश के मौन रहने के कारण उसे अपना पड़ छोड़ना पडा, जब अत्याचार से तंग होकर एक महिला निर्वस्त्र होकर सड़कों पर दौड़ती है, जब ये देश कन्या भ्रूण हत्या और दहेज़ हत्या के नित नए रेकोर्ड बना रहा है, पूरे नारी समाज को एक उत्पाद की तरह पेश किया जा रहा है , और ये सब टैब हो रहा है जब, राजनीती, समाज ,खेल,रंगमंच, सुरक्षा, मनोरंजन, किसी भी क्षेत्र में महिला किसी और से पीछे नहीं है तो, फ़िर इस महिला दिवस का औचित्य क्या और अर्थ क्या ??

शहर से बाहर निकलिए, गाँव-कस्बों में जाकर देखिये औरत समाज की हकीकत , उनका हसला , हिम्मत और हालत जब तक वो आगे नहीं बढ़ेंगी, आगे नहीं आयेंगी। तक तक लाख खेलिए आप महिला दिवस -महिला दिवस बहुत बड़ा परिवर्तन नहीं आने वाला।
ये हो सकता है हमारी महिला लेख्किकाओं को मेरा ये नज़रिया ज्यादा ही नकारात्मक लगे तो उनसे में अग्रिम क्षमा चाहूँगा, मगर मुझे लगता है की अभी भी बहुत कुछ करना है और जो हो रहा है उसकी भी दिशा ठीक करने की जरूरत है..

4 टिप्‍पणियां:

  1. Actually woman ka jo astitiva hai use purush hi nahi balki woman khud bhi bhul jati hai.....isliye mere vichar se man ko hi nahi balki woman ko bhi unki apni astitiva ko yaad dilane ke liye hum yeh day manate hen....jo bhul rahe hen ya ignore kar rahe hen, akhir unhe aaj ke din ehsaas to ho ki aaj woman ka bhi kuch astitva and uttardayitva hai...


    main ek gaon se hun, aur maine karib se dekha hai mahilaon ko samaj mein jhoojhte huye....aapne sahi kaha hai....aaj bhi woman hamare samaj mein jhoojh rahi hai but ab samaj parivartit ho raha hai... aur kal se aaj mein parivartan aaya bhi hai!

    rgds
    rewa

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  2. ऐसे दिन रातोंरात तो कोई बदलाव नहीं ला सकते है लेकिन हमें आशा करनी चाहिए कि महिलाओं की स्थिति बदलेगी

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  3. अजय भाई,आप का लेख बहुत उचित लगा महिला के इस दिवस पर .

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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