प्रचार खिडकी

रविवार, 11 मई 2008

यहाँ मैं क्या करता हूँ ?(कविता )

इस कोरी,
मगर काली नहीं,
स्लेट पर,
रोज़ कुछ,
शब्दों-चित्रों को,
उकेरता हूँ॥

कभी सपने,
कभी नग्मे,
कभी अपनी,
यादों के ,
रंग,
बिखेरता हूँ॥

रोज़ यहाँ,
कितने लम्हे,
कितने फ़साने,
खुशिया, गम,
सीने में,
सहेजता हूँ॥

बड़ी दुनिया में,
दूर हैं सब,
पहचान नहीं,
कोई रिश्ता नहीं,
पर जाने कितनों को,
रोज़ यहाँ , अपनी,
बाहों में,
समेता हूँ॥

हाँ यही सब तो करता हूँ यहाँ, रोज़ , और ये करना अच्छा भी लगता है, और आपको ..........

5 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है कविता बहुत अच्छी लगी लिखते रहिये धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह !
    बहुत खूब !!

    हमको आपकी कविता पढ़ना अच्छा लगता है । :)

    जवाब देंहटाएं
  3. हमको भी अच्छा लगता है.


    -----------------------------------
    आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.

    एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.

    यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.

    शुभकामनाऐं.

    समीर लाल
    (उड़न तश्तरी)

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...