प्रचार खिडकी

शनिवार, 17 मई 2008

जब भी मुझको याद करोगे .

अभी कुछ दिनों पहले ही मैंने आपको अपने दूसरे चिट्ठे में मित्र बैजू कानूनगो की कलम से निकली हुई रचना पढ़वाई थी , आज फिर एक बार उन्ही के कलम से कुछ और प्रस्तुत है :-

जब भी मुझको याद करोगे,
आंसुओं का अनुवाद करोगे॥

मेरा घर बरबाद किया तो,
किसका घर आबाद करोगे॥

इतनी फ़ैली हैं अफवाहें,
किस किस का प्रतिवाद करोगे॥

औलादों का सुख समझोगे,
पैदा जब औलाद करोगे॥

जो होना है, हो जाने दो,
कब तक वाद-विवाद करोगे॥

जीवन जीने की तैयारी,
क्या मर जाने के बाद करोगे॥

तुम को भूल गया जो, बैजू,
क्या तुम उसको याद करोगे....

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह जी, क्या बात है बैजू जी की. हर शेर बेहतरीन है. बधाई दें उन्हे हमारी.

    जवाब देंहटाएं
  2. जब भी मुझको याद करोगे,
    आंसुओं का अनुवाद करोगे॥

    " bhut sunder rachna"

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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