मैंने सपने देखना, नहीं छोडा है, न ही, उन्हें पूरा करने की, जद्दोजहद। मगर फिलहाल, जो हाल, और हालात हैं, उन सपनो को । फोंइल पेपर में, लपेट कर, फ्रिज में रख छोडा है, मौसम जब बदलेगा, और पिघलेगी बर्फ, सपने फ़िर बाहर आयेंगे, बिल्कुल ताजे और रंगीन.
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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....
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