प्रचार खिडकी

गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

मंजर , यही हर बार रहता है .

माहौल कुछ ऐसा है,
या कि, अपनी,
आदत बन गयी है ये,
अब तो,
हर घड़ी,
इक नए दाह्से का,
इन्तजार रहता है,
हकीकत है ये,
कि बेदिली की इंतहा,
देखते हैं, पहला,
दूसरा पहले से,
तैयार रहता है,

घटना- दुर्घटना ,
हादसे-धमाके,
प्रतिरोध-गतिरोध,
बिलखते लोग,
चीखता मीडिया,
बेबस सरकार,
आंखों में मंजर यही,
हर बार रहता है........

हाँ, शायद आज यही हमारी हकीकत बन चुकी है , कि एक के बाद एक नयी नयी घटनाएं, सामने आती जाती हैं, पिछली हम भूलते जाते हैं, और अगले का इंतज़ार करते हैं, यदि दूसरों पर बीती तो ख़बर, अपने पर बीती तो दर्द....

4 टिप्‍पणियां:

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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