प्रचार खिडकी

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

आत्मा और आंखों को तृप्त करती ग्राम्य झलकियां ......



जब भी ग्राम प्रवास पर निकलता हूं तो मेरी सबसे बडी कोशिश ये होती है कि पत्थरों के इन जंगल से निकल कर प्रकृति के करीब से होकर गुजरती जिंदगी के एक एक लम्हे को यादों में कैद करके सहेज़ लिया जाए , क्या पता कल होकर जिंदगी रहे न रहे , ये प्रकृति वैसी रहे न रहे ..यादें तो हमेशा ही शाश्वत रहती हैं , इन्हें यहां सहेज़ने के पीछे यही एकमात्र उद्देश्य है और हां फ़ोटो खींचने में आनंद तो आता ही है , आप भी देखें कुछ फ़ोटो ...........




Photo: कुदरत के करिश्मे को जितना निहारा जाए कम ही लगता है .........रेल की खिडकी से खींची गई एक और फ़ोटो ......आप उकता तो नहीं रहे हैं न :) :) :) :)
..

Photo: आज की फ़ोटो ......वही रेल ..वही खिडकी ..वही कैमरा ..वही मैं       ;) ;) ;) ;)



Photo: रेल की खिडकी से .........और हां एक बार फ़िर बताता चलूं कि ये मेरे गांव से दिल्ली वापसी की रेल यात्रा के दौरान खिडकी वाली सीट पर जमे होने के कारण धडाधड खींची जाने वाली फ़ोटो में से एक है .......दूर भट्ठे की चिमनी ............................




 Photo: रेल की खिडकी से .......................दूर बहुत दूर जाते सूरज चचा , बोझिल सी खुमारी में डूबती सी सांझ ..........








9 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. अनाडी का खेल राम , खेल का सत्यानाश .......अभी तो बस क्लिक करना भर आता है सर जी , आपको चित्र अच्छे लगे हमें जानकर आनंद आया

      हटाएं
  2. प्रकृति का खुला आँगन -चित्र बोल रहे हैं !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया प्रतिभा जी , स्नेह बनाए रखिएगा

      हटाएं
  3. ब्लॉग बुलेटिन टीम का आभार और शुक्रिया ,पोस्ट को स्थान व मान देने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  4. गाँव अभी तक राह तके हैं,
    नगर खिलौने नहीं थके हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. खूबसूरती को बहुत सुन्दर कैद किया है

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...