प्रचार खिडकी

रविवार, 6 जनवरी 2008

क्या पुरानी पोस्टों ko दोबारा पढ़ कर देखा है कभी ?

ये बात मैं उन लोगों से कह रहा हूँ जो काफी समय से इस चिट्ठाकारी में मशगूल हैं और अक्सर नयी नयी बातें और विचार लिख कर उन्हें ब्लोग जगत पर डालते रहते हैं। यदि कभी कोई पुरानी पोस्ट देखता भी है तो जहाँ तक मेरा ख्याल है कि सिर्फ ये देखने के लिए कि कोई नयी तिप्प्न्नी तो नहीं आ गयी। मगर मेरा कहना कुछ और है यहाँ , आपको याद है वो जाना जब हम चिट्ठियां लिखा करते थे हमें चिट्ठियाँ आया करती थी। या फिर वो ज़माना जब आप या हम नियमित रुप से डायरी लिखा करते थे , बहुत से लोग तो शायद अब भी लिख रहे होंगे।


कभी अचानक कुछ ढूँढ़ते धान्दते अचानक कोई पुराने डायरी कोई पुरानी चिट्ठी पढ़ने को मिल जाये तो कैसा सुखद एहसास होता है । ऐसा लगता है जैसे कोई ठंडी हवा , चुपके से आकर मन को उन्ही दिनों कि यादों में ले कर चली गयी है । वे दिन वे सुख या कि दुःख , वे दोस्त , वो प्यार, वो फाकाकाशी, या कि वो दोस्तों कि मनमौजी महफिल सब कुछ अचानक ही आंखों के सामने चलचित्र कि तरह आ जाता है । है ना ?

चलिए छोडिये ये सब आप में से कितने लोगों ने कभी पलट कर अपनी पहली पोस्ट को देखा है या फिर कि कभी उन पोस्टों पर दोबारा नज़र डाली है जो बहुत पहले लिख कर छोड़ दिया। यदि भूले भटके कभी ऐसा हो जाता है तो मेरे क्या से यही सारे बातें होंगी हो आपके मन में आ सकती हैं :-

--- यार, ये थी मेरी पहली पोस्ट । कमाल है इतना थोडा सा लिखा था वो भी ऐसा बच्चों जैसा , इतना बचकाना, यार इसको यदि ऐसे लिखता तो ये पोस्ट और बढिया बन सकती थी। या फिर ये कि , यार, इतना बुरा तो नहीं लिखा था जब कि ये मेरी पहली पोस्ट थी भाई, और फिर लोगों कि टिप्पणियाँ भी तो आये थी।

---- जो पोस्टें या वे पोस्टें जिन पर आपको प्रशंशा मिली हो या फिर कि खूब सारी टिप्पणियाँ मिली हों वे तो हमेशा ही सबसे पसंदीदा पोस्टों में से एक रहती है । कई बार तो लगता है कि कमाल है यार कितना अच्छा लिख गया था और इतना पसंद आया था लोगों को । कम्बक्त बहुत दिनों से कुछ खास लिख ही नहीं पा रहा हूँ।

---- कभी कभी कोई पुराने पोस्ट , उसका विषय , या फिर कुछ और आपको कोई नया विचार , कुछ नया करने को प्रेरित कर सकते हैं आप लगेगा कि यार इसपर तो लिखना रह हे गया है , या फिर कि अभी तो इस पर और भी बहुत कुछ और लिखा जा सकता है ।

और आप बडे प्यार से थोडी देर तक उसे निहार सकते हैं जैसे कोई माँ अपने बच्चे को निहारती है । कम से कम ये काम उस दिन तो हो ही सकता है जिस दिन आप का मूड लिखने को ना कर रहा हो ।

कहिये आप क्या सोचते हैं ?

6 टिप्‍पणियां:

  1. हम जैसों के तो गिने गिनाये दो चार पोस्‍टों में हमारी नजर जाते ही रहती है और महीने में दो चार टिप्‍पणीपाउ पोस्‍टों को मौत की घाट भी उतारते हैं । भाई जी आगे इसमें एक्‍सपर्ट कमेंट्स चाहिए । बढिया विषय उठाया है आपने, हमें भी इस संबंध में उत्‍सुकता है ।

    संजीव

    डोंगरगढ की मॉं बगलामुखी-बमलेश्‍वरी

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  2. ऐसे विचार तो आते ही रहते है।

    वैसे आपने बिल्कुल सही कहा है।

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  3. अच्छा लिखा है । कभी कभी तो खोलकर देख ही लेते हैं ।
    नववर्ष की शुभकामनाएँ ।
    घुघूती बासूती

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  4. पुरानी पोस्ट और पुराने खत पढने में फिर से वहीं रोमांच देते है ।

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  5. dhanyavaad is baat ke liye ki aap bhee mere vichaaron se itefaaq rakhte hain aur is baat ke liye bhee ke aapne mera utsaah badhaaya .

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  6. नई पोस्ट तो टिप्पणी के साथ ही लेकिन, पुरनकी तो बिना टिप्पणी के भी उतनै या उससे भी ज्यादा मजा देती है।

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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