(१)
बेशक मुझे मालूम नहीं,
जवाब इसका,
मगर इतना तो है कि ,
तुम्हारा सवाल अच्छा है॥
कहते हैं कि रात के बाद,
सवेरा तो आता ही है,
जाने कितनी लंबी होती है वो रात,
जिनके बाद सवेरा आता है,
जो भी हो दिल बहलाने को,
ये ख्याल अच्छा है ॥
नहीं पता, हां ये तो नहीं पता,
कि आज भरेगा ,
मजदूर का पेट,
या कि किसी ,
गरीब के घर,
पहुचेगा खुशियो का पैकेट,
ये हो न हो, मगर,
बाजार में उछाल अच्छा है॥
क्या करूं कि,
गीत तुम्हें मेरे,
अच्छे नहीं लगते,
मेरा सुर ,बेसुरा सही,
मगर तबले पे ,
तुम्हारा ताल अच्छा है ॥
बेशक उस गरीब के,
पास खाली झोली,
और याचक आखें हैं,
मगर मंदिर में जाने का,
पहला हक तुम्हारा है,
तुम्हारी पूजा का थाल अच्छा है ॥
(२)
इबादत को बहुत मिलेंगे,
मगर जिनके नाम पे हो न सके सियसत,
चलो आज करें कोशिश,
एक ऐसा भी भगवान तलाशा जाए॥
खालों से सजी दीवारें,
चकाचौंध अट्टालिकाओं के जंगल में
गेंदे की खूशबू और सोंधी महक वाला,
इक मिट्टी का मकान तलाशा जाए॥
टीवी से चिपके चिपके से,
काल्पनिक पात्रों में खोए बच्चे खूब मिले,
तितली के पीछे दौडता, चींटे को पकडता,
आज कोई नादान तलाशा जाए ॥
बडे भारी उपहारों से लदे-फ़दे
और मुस्कान नकली सी ओढे ओढे,
उन अपनों के बीच, साथ फ़ाकाकशी करने वाला,
कोई मेहमान तलाशा जाए॥
प्रचार खिडकी
गुरुवार, 17 दिसंबर 2009
कुछ पंक्तियाँ .......बस और क्या
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कभी सुख,कभी दुख
जवाब देंहटाएंयही ज़िंदगी है,
ये पतझड़ का मौसम
घड़ी दो घड़ी है,
नए फूल कल फिर
डगर में खिलेंगे,
उदासी भरे दिन
कभी तो हटेंगे...
जय हिंद...
उन अपनों के बीच, साथ फ़ाकाकशी करने वाला,
जवाब देंहटाएंकोई मेहमान तलाशा जाए॥
कविता की व्याप्ति इतनी बड़ी हो कि वे जन समान्य को समेट सकें । यह काम आपकी कविता बखूबी करती है ।
बहुत सुन्दर रचनायें ।
जवाब देंहटाएंकविता तो सुन्दर है झा साहब मगर खुशदीप भाई की दी हुई तस्सली के जबाब में बस यही कहूंगा " अब अँधेरे में सफ़र करने की आदत डालो, इस सबेगम का सबेरा नहीं होने वाला "
जवाब देंहटाएंतुम्हारी पूजा का थाल अच्छा है ॥
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
दोनों रचनाएँ बहुत महत्व की हैं। दोनों विषमता के विरुद्ध कविताएँ हैं और शिल्प भी अनूठा है।
जवाब देंहटाएंdono hi rachnayein alag alag sandesh deti huyi.........bahut hi sundar.
जवाब देंहटाएंनहीं पता, हां ये तो नहीं पता,
जवाब देंहटाएंकि आज भरेगा ,
मजदूर का पेट,
या कि किसी ,
गरीब के घर,
पहुचेगा खुशियो का पैकेट,
ये हो न हो, मगर,
बाजार में उछाल अच्छा है॥
वाह बहुत सटीक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
आपके ब्लाग पर पहली बार आया, तबियत मस्त हो गई..
जवाब देंहटाएंसीधे-सरल शब्दों में गंभीर कटाक्ष यही व्यंग्य लेखन की विशेषता है
खासकर इन पंक्तियों ने मन मोह लिया-
बेशक उस गरीब के,
पास खाली झोली,
और याचक आखें हैं,
मगर मंदिर में जाने का,
पहला हक तुम्हारा है,
तुम्हारी पूजा का थाल अच्छा है ॥
--और फिर कभी
बढ़िया, अच्छा और मस्त..
जवाब देंहटाएंबड़ी सार्थक बातें..रचना के माध्यम से.
जवाब देंहटाएंबडे भारी उपहारों से लदे-फ़दे
और मुस्कान नकली सी ओढे ओढे,
उन अपनों के बीच, साथ फ़ाकाकशी करने वाला,
कोई मेहमान तलाशा जाए॥
-बहुत बढ़िया!!
बहुत बढिया रचना.....एक दम सार्थक
जवाब देंहटाएंबेशक उस गरीब के,
जवाब देंहटाएंपास खाली झोली,
और याचक आखें हैं,
मगर मंदिर में जाने का,
पहला हक तुम्हारा है,
तुम्हारी पूजा का थाल अच्छा है ॥
दोनों ही कवितायें बहुत सुन्दर लगीं।
बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सटीक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
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