मर रहा है ,
हर एहसास आज,
और रिश्ते भी ,
दरकते जा रहे हैं॥
अब ख़ुद पर बस नहीं,
कठपुतली , बन वक्त के साथ,
थिरकते जा रहे हैं॥
लगे तो रहे, ताउम्र, पर जाने,
निपटाए काम की, हम ही ,
निपटते जा रहे हैं॥
gairon से दुश्मनी की,
कहाँ है फुरसत,
हम तो अपनों से ही,
उलझते जा रहे हैं।
न खाते-पैगाम, न दुआ सलाम,
युग हो रहा है वैश्विक, हम,
सिमटते जा रहे हैं॥
चाहता हूँ की रहे साथ सिर्फ़ मोहाब्बत,
पर खुदगर्जी और नफरत भी मुझसे,
लिपटते जा रहे हैं॥
सपने पाल लिए इतने की,
भिखारियों की मानिंद,
घिसटते जा रहे हैं॥
आंखों ने रोना छोडा,
हमने भी सिल लिए लैब,
जख्म ख़ुद ही अब तो ,
सिसकते जा रहे हैं॥
कैसे कोसुं अब,
इस पापी दुनिया को,
जब मुझमें भी सभी पाप,
पनपते जा रहे हैं॥
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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....