प्रचार खिडकी

बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

वाह लोग फुरसत में हैं.

यारों, मुझे लगता था की इस मारामारी के दौर में सब, खासकर शहरों में, इतने व्यस्त हैं की उनके पास समय देखने और बताने तक के लिए समय नहीं है। कलाई झटक कर टाईम देख कर बताने से आसान तो यही लगता है की सिर्फ़ कह दो - घड़ी नहीं है। छुट्टी। मगर अब जबकि पिछले कुछ दिनों की घटनाओं पर गौर फ़रमाता हों तो लगता है की बस एक हम जैसे धोबी के घधे टाईप लोगों के साथ ( यहाँ में स्पष्ट कर दूँ की अक्सर ऐसे विशिष्ट स्थानों पर मुझमें ये पशुगत आचरण भाव उत्पन्न हो जाता है जैसे अक्ल के मामले में ऊल्लू या फिर हैसीयत के मामले में धोबी का कुत्ता आदि ) ही ये हालात हैं। नहीं तो सबके पास टाईम ही टाईम है॥

अब देखिये न मुम्बई में ठाकरे साहब ने अपने ठकुराई दिखाते हुए मराठा महारथियों को पता नहीं कौन सा मंतर फूंक दिया की सब निकल पड़े , बेचारे सब्जी भाजी बहकने वालों, रिक्शा , रेहडी वालों से यूं निपटने जैसे मुग़ल सेना से निपट रहे हो०न्। इसके बाद प्रेम दिवस पर भी बहुत सारे शिव भक्त लोग दिन भर घूम घूम कर प्रेमालाप
कर रहे युगल प्रेमियों को घेर घेर कर पीटते रहे.

अजी बात यहीं तक सीमित रहती तो चल जाता , मगर ये तो हद हो गयी भैया. सूना देखा की hअजारों लोग नई पिक्चर जोधा अकबर का विरोध करने सड़कों पर उतर आए. इतिहास-वितिहास का तो पता नहीं मगर इतना यकीन है की यदि अकबर भी जिंदा होता तो यकीनन ही इतनी सुंदर जोधा के लिए ये नहीं कह सकता था की ये मेरे प्रेमिका नहीं है.
मगर इन सब लाफ्दों के बीच जो एक बात मुझे समझ में आई वो ये की यार शायद हम घोंचू logon ke अलावा सबके पास टाईम ही टाईम है। अजी बहुत से अब्दुल्ला घूम रहे हैं बेगाने की शादी में दीवाने होने को .

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