हवाएं बदल रही हैं , रुख अपना,
या कि,
मौसम का ही मिज़ाज,
गरमाने लगा है॥
जिन्हें कोफ्त होती थी,
हमारे पसीने की बू से,
हमें अब गले लगते , उन्हें,
इत्र का मजा आने लगा है ॥
गुंडों को कब डर था,
सजा पाने, जेल जाने का,
हाँ, चुनाव न लड़ पाने का,
दुःख , उन्हें भी सताने लगा है॥
कहीं भय हो, कहीं जय हो,
बेशक अलग सबकी ले हो,
झूम झूम के, घूम घूम के, हर कोई,
गीत एक ही गाने लगा है॥
हर कोई दर्दे हाल पूछता है आजकल,
सबको सरोकार है मेरी मुश्किलों से,
जिसने दिए जख्म अब तक,
अब वही उन्हें सहलाने लगा है॥
वो और था ज़माना हमारा,
कि आए , और लिख कर चल दिए,
अब कोई इतना मासूम कहाँ हैं,
हर कोई ब्लॉग सजाने लगा है॥
सूना है छापा पड़ने वाला है , इनकम टैक्स का,
अपने किसी ब्लॉगर के यहाँ भी,
लगता है ख़बर फ़ैल गयी है कि,
अब हिन्दी ब्लॉगर भी कमाने लगा है।
तो भाई लोगों जो जो मोटा कम रहे हो, सब तैयार हो जाओ। अपना क्या है अपनी तो रद्दी की टोकरी है जिसमें कभी भी कुछ भी , ये देहाती बाबु कहते रहते हैब। हाँ छापा पड़े तो बताना जरूर, अजी हमसे कैसी शर्म .
बहुत सुंदर रचना ... बधाई।
जवाब देंहटाएंजो भी है बहुत अच्छा है।
जवाब देंहटाएंaapko achhha laga, iske liye dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंmujhe to lagta hai ki bhaartiya ya kahein ki vishwa loktantra mein ye joota yug kee shuruaat hai. aapko pasand aayaa iske liye dhanyavaad.
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