इन दिनों राजधानी में कुछ बड़ी ख़बरों के बीच एक ख़बर लगभग रोज जो पढने सुनने और देखने को मिल रही है वो है , राजधानी के स्कूलों , में बढ़ी हुई फीस को लेकर अभिभावकों द्वारा किया जा रहा प्रतिरोध। अभिभावकों का गुस्सा अब धीरे धीरे बढ़ता ही जा रहा जो स्वाभाविक भी है।
दरअसल या कहानी तब शुरू हुई जब छट्ठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू की गईं, इसके अनुरूप शिक्षाओं के वेतन में बढोत्तरी की सिफारिश भी की गयी, जिसे मानने के लिए सभी तैयार थे। सारकारी विद्यालयों में तो कोई दिक्कत नहीं हुई, किंतु जब यही मांग निजी विद्यालयों में उठी तो विद्यालय प्रशाशन को जैसे एक मन माँगी मुराद मिल गयी इस बड़े हुए वेतन की पूर्ती हेतु योजना ये बनी की सारा का सारा पैसा हमेशा की तरह अभिव्हावकों के जेब ढीली कर के वसूला जाए इसलिए बाकायदा पिछले साल की बकाया वसूली की योजना बन गयी। इस पैसे को पाने के लिए स्कूलों ने ठीक वही वही हथकंडे अपनाए जो बेशर्मी से कभी निजी अस्पतालाओं ने अपनाया था ,यदि कभी किसी को उसका बच्चा नहीं देना तो कभी किसी के परिजनों को मरीज की लाश तक नहीं देना. बिल्कुल इसी तरह स्कुलूँ ने भी सारी मर्यादाओं को टाक पर रख कर बच्चों के परीक्षा परिणाम तक पर रोक लगा दी .
हैरत की बात ये है की इस मामले में अदालतों के कड़े रुख और सख्त आदेशों और सरकार के खोखले आश्वासनों के बावजूद स्थिति जस की तस् है. आज देश का समाज जिस परिस्थिति में है उसमें चिकित्सा, स्वास्थय, शिक्षा, न्याय, राजनीती सभी अपने पतन की उर अग्रसर हैं किंतु शिक्षा जो की मौलिक अधिकार है उसका इस तरह से बाजारीकरण होना किसी भी दृष्टिकोण से अच्छा नहीं है .
यहाँ एक बात जो गौरतलब है वो ये की सरकार एक तरफ़ तो पूर्ण शिक्षा के दावे कर रही है, न जाने कितनी ही हवाई योजनायें बना रही है, और कितनो के सपने दिखा रही है, वहीं दूसरी तरफ़ ऐसी स्थितियों में बिल्कुल निष्क्रिय हो जाती है। शायद आपको जानकर ये आश्चर्य हो की पिछले एक दशक में सरकार ने कुल खुले विद्यालयों का दस प्रतिशत भी नहीं खोला है . yadi स्थिति ऐसी ही रही तो एक दिन ऐसा भी आयेगा की लोगों को अपने बच्चों को शिक्षा दिन्लाने के लिए अपना घर बर बेचना पडेगा। आज शिक्षा का पूरी तरह से व्यावसायीकरण कर दिया गया है। चारों तरफ़ खरीद बिक्री हो रही है, सब कुछ बिकाऊ है, शिक्षा भी .......
बहुत अच्छी पोस्ट। आज आम आदमी अपना घर बेचकर भी शिक्षा नहीं दिला सकता। इन दुकानों पर प्रभावी नियंत्रण जरुरी है।
जवाब देंहटाएंगरीब तो हमेशा से शिक्षा से वंचित रह जाता है
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
फीस बढ़ रही है निजी स्कूलों की। सरकारी स्कूलों की फीस अभी भी वाजिब है। यदि निजी स्कूलों में बच्चों को भेजने का शौक है तो उनके मुंहमांगे दामों को भी देना ही पड़ेगा। नहीं तो राजधानी में सैकड़ों सरकारी स्कूल खुले ही हुये हैं। पूरी लिस्ट यहाँ देखें।
जवाब देंहटाएंaapki sabhi posts apke har blog par bahut achhi hain samajik sarokaron se bavsta dhanyvad
जवाब देंहटाएंaap sabkaa bahut bahut dhanyavaad, padhne aur saraahne ke liye, sneh banaaye rakhein.
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