जरनैल का निशाना ही नहीं शिकार भी ग़लत था
ये तो जाहिर ही था की इराकी पत्रकार जैदी ने जो काम किया है वो महज एक शुरुआत भर थी और उसके परिणाम आगे भी देखने को मिलेंगे मगर ये नहीं पता था की उसकी शुरुआत भारत से ही होगी. हालाँकि मैं इस बहस में बिल्कुल भी नहीं पढ़ना चाहता की जो हुआ वो ग़लत था या सही क्यूंकि इस बहस में तो सारा देश ही पड़ा हुआ है हाँ ये जरूर है की इस तरह की घटनाएं ख़ुद पत्रकारों के लिए आने वाले समय में काफी मुश्किलें खड़ी होने वाली हैं, और इसका असर जल्दी ही देखने को मिलेगा.
अब यदि बात करें पत्रकार के रूप में या कहें की एक सिक्छ के रूप में जरनैल सिंग के आक्रोश की तो १९८४ के सिक्छ दंन्गों के पीडितों का दुःख हो या गुजरात के दंगों या फ़िर भोपाल गैस पीडितों का दुःख हो, इस देश में आज तक न तो कभी किसी सरकार न ही किसी शख्सियत और न और किसी राजनीतिज्ञ ने तो कभी भी नहीं महसूस किया है. तो फ़िर ऐसे में यदि सरकार अपने अधीन किसी संस्था का दुरूपयोग करती है और सी बी आईई तो जितना अपनी काबिलियत के लिए जानी जाती थी उससे अधिक तो अब अपनी कई सारी नाकामी और उससे भी अधिक सरकार की कठपुतली की तरह काम करने के लिए बदनाम हो रही है, तो ऐसे में उससे इससे जयादा की उम्मीद ही क्यूँ की जानी चाहिए थी..
किंतु यहाँ इन सबसे अलग जो एक बात मेरे मन में खटक रही है वो ये की यदि सिक्खों को ये लग रहा है की कोंग्रेईस की सरकार में सिक्ख दंग के लिए जिम्मेदार लोगों को न सिर्फ़ बचाया जा रहा है बल्कि उन्हें तो दोबारा मौका भी दिया जा रहा है तो उनका यूँ उबल पढ़ना स्वाभाविक ही है लेकिन यदि ऐसा ही है तो फ़िर उनका सारा और पहला गुस्सा तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंग के ख़िलाफ़ ही निकलना चाहिए था, इसकी वजह भी स्पष्टतः यही है क्यूंकि सरकार के सबसे जिम्मेदार व्यक्ति स्वयं सिख्ह हैं तो फ़िर उनके ख़िलाफ़ कहीं एक शब्द क्यूँ नहीं आया. कहीं उनका पुतला नहीं जलाया जा रहा है.. न स्वयं ही प्रधानमंत्री इस सम्बन्ध में कुछ कह रहे हैं. मुझे ये भी समझ नहीं आ रहा है की यदि सिक्छ धर्म के ख़िलाफ़ होने पर पंजाब के पूर्व प्रधानमंत्री को छ महीने तक गुरुद्वारे में जूते साफ़ करने की सजा दी जा सकती है तो फ़िर आख़िर क्यूँ प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ कुछ नहीं हो रहा है.
इस प्रश्न का जवाब यदि सिख्हों के पास नहीं है तो फ़िर जो प्रदर्शन इन दिनों अदालतों के आसपास और कई जगह किए जा रहे हैं उनका क्या औचित्य है. जरनैल क्या सचमुच मनमोहन सिंग के साथ भी वही कर सकते थे जो उन्होंने चिदाम्बरम के साथ किया. ये प्रश्न ऐसे जरूर हैं जिनका जवाब दिया जाना चाहिए……..
जनता की आवाज जब न सुनती सरकार।
जवाब देंहटाएंअसंवैधानिक ढ़ंग से तब होता प्रतिकार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
चाहे जरनैल ने गलती की हो और निशाना भी गलत हो, लेकिन उस का लाभ उठाने वाले तो उठा गए। जिन का नुकसान होना था वह भी हो लिया।
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