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रविवार, 28 जून 2009

बलात्कार : एक सामाजिक अभिशाप

पिछले दिनों एक के बाद एक जिस तरह से देश और विदेश के अलग लगा भागों से बलात्कार की घटना की खबरें आयी हैं उसने न सिर्फ इस अपराध की बढ़ती दर की तरफ ध्यान खींचा है, बल्कि समाज के सामने बहुत से प्रश्न खड़े कर दिए हैं. बलात्कार की घटनाएं पिछले एक दशक में बहुत तेजी से बढ़ी हैं.ये न सिर्फ भारत जैसे अर्धशिक्षित एवं अविकसित देशों में कुछ सबसे ज्यादा होने वाले अपराधों में से एक है , बल्कि पूर्ण विकसित पश्चिमी देशों में भी बलात्कार, पांच बड़े घट रहे अपराधों में से एक है. सामाजिक विश्लेषक इस बात पर चिंतित हैं कि ऐसा तब हो रहा है जब वैश्विक समाज का शिक्षा और विकास का स्तर अब पहले से कहीं अधिक है. महिलाएं अपने अधिकार, अपनी सुरक्षा के प्रति होने वाले अपराध के लिए कठोर से कठोर कानून बनाए जा रहे हैं. इन सबके बावजूद महिलाओं के प्रति किये जा रहे अपराधों , शारीरिक शोषण तथा बलात्कार आदि की दर में हो रही विर्द्धि कहीं न कही यही दर्शा रही है कि समस्या को गंभीरता से लेकर सही दिशा में उसके समाधान की तरफ नहीं बढ़ा जा रहा है.

महिलाओं की स्थिति, उनके विकास, सामाजिक स्तर, उनके विरुद्ध किये जाने वाले अपराध आदि पर अध्ययन करने वाली कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने समय समय पर कई रिपोर्टें प्रकाशित की हैं. ऐसी ही एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में प्रति मिनट २६ घटनाएं महिलाओं के शारीरिक शोषान की, लगन्भाग ७६ घटनाएं छेड़छाड़ की, २८ घटनाएं उनके कत्ल और बलात्कार की, ५२ घटनाएं घरेलू हिंसा की और न जाने कितनी ही घटनाएं कन्या भ्रूण ह्त्या की हो रही हैं.रिपोर्ट के अनुसार विकसित देशों में जहां कम उम्र में ही यौन संपर्क तथा गर्भपात, दैहिक शोषण एवं घरेलू हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है. वहीं अशिक्षित ,पिछडे एवं विकासशील देशों में कन्या भ्रूण हत्या के कारण, अंधविश्वास के घरेलू हिंसा और दहेज़ हत्या के साथ साथ बलात्कार के कारण भी प्रतिदिन हजारों महिलाएं मौत को गले लगा रही हैं. महिला समाज के शाश्क्तिकरण और सामान आधिकारिता की पक्षधर संस्थायें इसका स्पष्ट कारण मानती हैं पुरुष प्रधान समाज, नारी के बढ़ते वर्चस्व और सफलता को हतोत्साहित करने के उद्देश्य से ही प्रतिकार स्वरुप ऐसा कर रहा है.

सामाजिक परिवर्तनों पर गहरी नज़र रखने वाले विश्लेषक ऐसा नहीं मानते. वे इसकी कई अलग सी वजहें मानते हैं. सामाजिक विश्लेषकों का कहना है कि अंधविश्वास से ग्रस्त होकर दायाँ, और चुडैल के नाम पर महिलाओं को नग्न करके घुमाने , मारने वाले जलाने वाले, तथा शराब के नशे में चूर होकर अपनी ही पुत्री , बहन का शारीरिक शोषण करने वाले तो किसी महिला पुरुष वर्चस्व से कोई मतलब नहीं होता ये सब परिवेश से प्रभावित अपराध है. इस विषय पर शोधरत अंतर्राष्ट्रीय संस्था ,"वुमेन :टारगेट ऑफ़ शोशल क्राईसिस " ने अपने अध्ययन एवं सर्वेक्षण से महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों तथा बलात्कार जैसी घटनाओं के कई कारणों पर प्रकाश डाला है.

महिलाओं के प्रति जो अपराध नगरीय क्षेत्र में हो रहे हैं उसके लिए सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है सामाजिक-सांस्कृतिक प्रदूषण, यौन उन्मुक्त्तता तथा उपभोगी प्रवृत्ति के प्रसार को . पश्चिमी देशों में जहां बच्चे एवं युवा ,रोमांच और उत्सुकतावश कभी बहकावे में तो कभी स्वेच्छापूर्वक ही शोषण के सुश्चक्र में फंस जाते हैं. संस्था ने बताया कि पिछले एक दशक में अवयस्क युवतियों द्वारा गर्भपात की घटनाओं में लगभग ३४ प्रतिशत के वृद्धि हुई है. वैश्वीकरण के इस प्रवाह में एशियाई
युवा आधुनकीकरण के आंधी में पश्चिमी संभ्यता का अन्धानुकरण करने लगे. इसी बीच टेलीविजन, मोबाइल,केबल ,,डिश, इन्टरनेट,फैशन, ने भी एक के बाद एक भारतीय बाजार के रास्ते , भारत के घरों में पैठ बनाई. ऐसा अनाहीं है कि इन उपकरणों व माध्यमों ने ही सारा माहौल बिगाड़ दिया, मगर भारत की जनता जो न तो पूर्णतया शिक्षित है और परिणामतः न ही मानसिक रूप से परिपक्व इसलिए इनके द्वारा जो भी बुराइयां आ सकती थी पूरे वेग से आयें. आज इpन्टरनेट कैफे, कॉल सेंटर, आदि के नाम का जहां भी जो भी दुरूपयोग महिला अधिकारों के विरुद्ध किया जा रहा है वो इसी का परिणाम है.

पिछले एक दशक में हुई बलात्कार की घटनाओं में आश्चर्यजनक रूप से २७ प्रतिशत ऐसे थे जिनमें अपराधी पीडिता का कोई अपना था. बहुत सी ऐसी घटनाएं भी थी जिनमें अपराधी पिता , भाई और पुत्र तक थे . संस्था के अनुसार इन सभी घटनाओं में जो एक बात सामान थी , वो थी शराब. मद्यपान , बहुत ज्यादा सेवन करने के कारण ये अपराधी आवेश और उत्तेजना के चरम पर पहुँच जाते हैं, ऐसी स्थिति में ही वे ये पाशविक कृत्य कर बैठते हैं. सर्वेक्षण की रिपोर्ट यही साबित करती है कि बलात्कार के कुल मामलों में सिर्फ १३ प्रतिशत मामले में ही ऐसे होते हैं जिनमें अपराधी किसी निजी दुश्मनी से, किसी से बदला लेने के लिए या किसी अन्य कारण की वजह की वजह से होते हैं. एनी सभी पूर्व नियोजित नहीं होते हैं.

बलात्कार की घटना पर रोक न लग पाने का का एक एक मुख्या कारण है, इसके अपराधियों में सजा के दर का ख़त्म हो जाना. पश्चिमी देशों में बलात्कार के अपराध से मुक़दमे की सारी प्रक्रिया और कार्यवाही इतनी नियोजित , गूप्नीय व तकनीक आधारित (डी एनन ए ) होती है कि गलती की गुंजाइश न के बराबर होती है जबकि भारत में तो बलात्कार की घटना के बाद से मुक़दमे की समाप्ति और उसके बाद तक पीडिता का सारा जीवन ही किसी बलात्कार से कम नहीं होता. धीमी न्यायिक प्रक्रिया एवं साक्ष्य तथा वैज्ञानिक सबूतों के अभाव में अक्सर हे एमुज्रिम बच निकलते हैं. भारतीय कानून व्यवस्था में ऐसे अपराधों में पीडिता के लिए किसी भी तरह की कोई आर्थिक , मानसिक या सामाजिक सहायता की कोई व्यवस्ता नहीं है.ये इस मुद्दे का सबसे अफसोसजनक पहलु है.

भारत में बलात्कार की घटनाओं में मीडिया का गैर संवेदनशील और गैर जिम्मेदार रवैया भी काफी अहम् भूमिका निभाता है ,किसी मुक़दमे को दिशा देने में. कई बार तो तो मीडिया. विशेषकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया..अति उत्साह में और खोजी पत्रकारिता के नाम पर जाने अनजाने वो सब भी कर जाता है है जो कि कानूनन गलत है ,,,और बाद में इसके कारण कई बार अदालतों से फटकार खाने की सजा भी पता है. एक और बात जो अक्सर मीडिया , इस तरह की तमाम घटनाओं की तीपोर्तिंग में करती है वो है ...किसी भी घटना के घटते ही उसके संभावित आरोपियों..उसके मुजरिम..सजा आदि के नतीजे पर झट से पहुँच जाना..आरुशी ह्त्या काण्ड में मीडिया ने अपनी रिपोर्टिंग से आरुशी के पिता को ही उसका कातिल करार दे दिया था...ऐसी रिपोर्टिंग भले ही न्यायिक प्रक्रियाओं पर किसी तरह का कोई प्रभाव न डालती हों..मगर एक अनिश्चित माहौल तो जरूर ही तैयार कर देती हैं.

जो भी हो इतना तो निश्चित है कि ये घत्नाह्यें समाज के लिए एक चेतावनी की तरह हैं...और साथ ही आत्मावलोकन करने का इशारे भी..अन्यथा जिस दिन आधी दुनिया ने आपने हक़ के लिए वही किया जो पिछले दिनों पुणे की एक अदालत में ,,क्रुद्ध महिलाओं की भीड़ ने एक मुजरिम के साथ किया था ..उस दिन सचमुच ही एक अलग समाधान निकलेगा...



14 टिप्‍पणियां:

  1. बलात्कार की घटना दिन पर दिन बढ़ती जा रही है,यह मनुष्य के दूषित मानसिकता को दर्शाता है..
    हम कितने परिपक्व हुए है इस बात का बोध करता है..
    भारत वा धरा जहाँ महिलाएँ देवियों की तरह पूजी जाती थी..आज हम सोचते है तो शर्म आती है
    मनुष्य के नाम पर..

    आपने अपने बहुत ही सुंदर विचार प्रस्तुत किए..

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  2. अच्छी विश्लेष्णात्मक पोस्ट !

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  3. बलात्कार सचमुच एक गंभीर समस्या है। बड़े शहरों में लोग अजनबियों की तरह रहते हैं। उनमें परस्पर कोई सामुदायिक खिंचाव नहीं है। एक-दूसरे को पराय समझकर परस्पर जुल्म करते रहते हैं।

    यह हमारे समाज की एक प्रमुख विफलता है। आवश्यकता है कि सामुदायिक भावना को दुबारा विकसित किया जाए। इसमें भाषा की प्रमुख भूमिका रहेगी। एक ही भाषा बोलनेवालों को परस्पर जोड़ना सबसे आसान होता है।

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  4. वास्तव में यह सामाजिक अपराध है जिसका खामियाजा पीडितो को उठाने पड़ते है .

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  5. पुरानी सामाजिक व्यवस्था के ध्वस्त होने तथा नई सामाजिक व्यवस्था के अस्तित्व में न आने के परिणाम हैं ये। यह काल बहुत लंबा चलने की संभावना है। नतीजे के रूप में सारे विद्रूप झेलने ही होंगे।

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  6. अजय जी बलात्कार एक घटिया ही नही बहुत ही गन्दा अपराध है,लेकिन कानून बमा कर ही इति श्री करने से कुछ नही होगा, किसान अपने खेतो के चारो ओर बाड क्यो लगबाते है, ओर अगर बाड ही नही होगी तो हर आता जाता जानवर मुंह तो मारेगा ही

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  7. पोस्ट अच्छी है ,इसके लिए कही न कही सामाजिक परिवर्तन के कारक भी जिम्मेदार हैं .

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  8. जो कारण हो सकते हैं उनपर तो विचार करना ही होगा किन्तु जबतक खेत, बाड़, फल दिखा तो कोई खा ही लेगा वाली मानसिकता रहेगी तबतक कुछ भी बदलेगा ऐसे आसार नजर नहीं आते।
    जैसे वर्षा के बाद केंचुए धरती से बाहर आते हैं और लोगों के पैरों तले दब जाते हैं, वैसे ही स्त्री घर से बाहर निकली तो बलात्कार की शिकार भी होगी, सो केंचुओं की तरह अपने बिल में छिपी रहे,यह उपाय तो नहीं हो सकता। वैसे वह बिल में भी कितनी सुरक्षित है यह तो हम देख व सुन ही रहे हैं।
    जब तक हमारी मानसिकता ही 'समरथ को ना दोष गुसाईं' वाली है तो पुरुष भी अपने अधिक बल का दुरुपयोग करता ही रहेगा। बदलाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लाना होगा। गलत को हर हाल में गलत ही कहना होगा। आप यह नहीं कह सकते कि बलात्कार ही गलत है किन्तु अपने से कमजोर, गरीब या दलित को दबाना सही। अपराध की संस्कृति जब पनपती है तो किसी को नहीं बक्शती। हर क्षेत्र से अपराधी को बेदखल करना होगा। यह नहीं कि राजनीति या, कोर्पोरेट जगत में अपराध मान्य हैं किन्तु बलात्कार नहीं। जो कोई भी अपराध करता है और बच निकलता है वह और अपराध भी करेगा और उसका बच निकलना अन्य को भी अपराधी बनने की प्रेरणा देगा।
    अपराध सदा छोटे से शुरू होकर बड़े होते जाते हैं। आज केवल नकल तो कल नकली मार्कशीट और फिर अपराध करने से बचने की जो सहज प्रवृत्ति होती है उसका अन्त हो जाता है। अपराध का मनोविज्ञान व समाजशास्त्र समझना होगा। यह ऐसी आग है जिसे यहाँ वहाँ पानी के छींटे मारकर समाप्त नहीं किया जा सकता।

    जिन बच्चों को हम जन्म देते हैं यदि उन्हें सही गलत की पहचान व दूसरों की निजता व इच्छाओं का आदर करना न सिखा सकें तो हम पालकों का सिर लज्जा से झुक जाना चाहिए।
    घुघूती बासूती

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  9. जो पुरुष अभी पैदा हुए है यानि शिशु है उन्हे स्त्री का महत्व बताये 20 साल बाद स्थिति सुधर सकती है

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  10. इस विषय पर यह आलेख-जहाँ एक विचारणीय विश्लेषण प्रस्तुत कर रहा है..आंकड़े मन को व्यथित कर गये. काश!! इन्सानियत जागे..कानून कड़क हो..व्यवस्था इस दिशा में सार्थक कदम उठाये.

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  11. राज भाई ..नहीं मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ की बलात्कार जैसे घृणित कृत्यों में कोई किसान और बाद वाली बात है..मेरी अपनी अदालत में इस समय भी कम से पांच मुक़दमे तो ऐसे हैं ही जिनमें पिटा ही पुत्री के बलात्कार के आरोपी हैं..बताइये अब इसमें क्या कहेंगे...हाँ ये ठीक है की यदि अभी से बच्चों को महिलाओं की..नारियों की इज्जत...उनका सम्मान करना सिख्यायें तो निश्चित ही भैविश्य की नस्लें कुछ अछे संस्कार वाली हों....

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  12. अजय कई बातें काफी सही लगी और आंकड़ें अंदर तक झकझोड़ने वाले। दिल्ली में इस महीने लगभग हर दिन ये अपराध हुआ है। और एनसीआर को काउंट किया जाए तो हर दिन हुआ अपराध। राज जी को जवाब जो आपने दिया उससे में सहमत हूं। हाल ही में मैंने भी देश में बढ़ते अपराध पर चिंता जताई थी। http://nitishraj30.blogspot.com/2009/06/blog-post_24.html

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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