ाजय जी स्पष्ट दिखाई नही दे रहा इसे अपने ब्लाग पर लगायें। अब बुढापे मे आँखें कहाँ इतना काम करती हैं। बधाई इसके दैनिक ट्रिब्यून मे छपने के लिये। धन्यवाद।
टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....
बढ़िया व्यंग :):)
जवाब देंहटाएंाजय जी स्पष्ट दिखाई नही दे रहा इसे अपने ब्लाग पर लगायें। अब बुढापे मे आँखें कहाँ इतना काम करती हैं। बधाई इसके दैनिक ट्रिब्यून मे छपने के लिये। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर व्यंग जी, मजा आ गया.लेकिन बताया नही कोन से माल मे गये थे आप:)
जवाब देंहटाएंअब लगा कि पक्के व्यंग्यकार हैं ।
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