प्रचार खिडकी

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

शॉपिंग मॉल की हसीन शाम : ( दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित मेरा एक व्यंग्य )




व्यंग्य को पढने के लिए उस पर चटका लगा दें , और मजे से पढें ............






4 टिप्‍पणियां:

  1. ाजय जी स्पष्ट दिखाई नही दे रहा इसे अपने ब्लाग पर लगायें। अब बुढापे मे आँखें कहाँ इतना काम करती हैं। बधाई इसके दैनिक ट्रिब्यून मे छपने के लिये। धन्यवाद।

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  2. बहुत सुंदर व्यंग जी, मजा आ गया.लेकिन बताया नही कोन से माल मे गये थे आप:)

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  3. अब लगा कि पक्के व्यंग्यकार हैं ।

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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