प्रचार खिडकी

शनिवार, 9 फ़रवरी 2008

आदमियों की भीड़ में इंसान नहीं मिलता

यहाँ आदमियों की,
भीड़ है,
पर कोई,
इंसान नहीं मिलता..

सबसे निश्छल,
सबसे निष्पाप,
ऐसा कोई,
नादाँ नहीं मिलता॥

बेईमानों की,
पहुंच ऊंची है,
रुत्बेदार कोई,
ईमान नहीं मिलता॥

पंख मिलते ही,
उड़ जाते हैं परिंदे घरों से,
माँ-बाप की लाठी सा,
संतान नहीं मिलता॥

हर तरफ शोर है,
कहीं रोने का, कहीं गाने का,
शहर का कोई कोना,
सुनसान नहीं मिलता॥

यूं तो धनकुबेरों की,
फेहरिस्त है बहुत लम्बी,
पर गरीबों को अपना कहे जो,
धनवान नहीं मिलता॥

2 टिप्‍पणियां:

  1. आप की कविता बहुत सुन्दर हे लेकिन यह पक्तिया दिल के तार छु गई..
    यूं तो धनकुबेरों की,
    फेहरिस्त है बहुत लम्बी,
    पर गरीबों को अपना कहे जो,
    धनवान नहीं मिलता॥
    बहुत बहुत ध्न्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. raaj saahab,
    shukriyaa kaash ki ye baat sachmuch hee hamare dhan kuber samajh paate.

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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