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बुधवार, 4 जून 2008

मेरा कबाड़खाना , अब "रद्दी की टोकरी "

जी हाँ , आज और अभी से मेरा कबाड़खाना , यानि मेरा ये चिटठा, आपको कबाड़खाना के नाम से नहीं बल्कि " रद्दी की टोकरी " के नम से दिखेगा। दरअसल ये विचार तो मेरे मन में तभी से था जब इससे पहले ऐसी ही एक स्थिति में मेरा दूसरा चिटठा "बिहारी बाबू कहीं " को प्रियरंजन भाई के आदेश के बाद मैंने देहाती बाबू कहीं में बदल दिया था।

आज दैनिक हिन्दुस्तान के दिल्ली संस्करण में जब वरिष्ठ चिट्ठाकार श्री रवीश कुमार जी ने अशोक पण्डे जी के चिट्ठे "कबाड़खाना " का विस्तृत जिक्र किया तो मुझे पता नहीं क्यों एक आत्मग्लानी सी हुई। हालांकि मुझे किसी ने भी कभी टोका नहीं और मेरा कबाड़खाना अंग्रेज़ी शीर्षक वाला था , न ही ये बात थी की मैंने अशोक जी के चिट्ठे के नाम से प्रेरित होकर ऐसा कोई नाम रखा था, मगर फ़िर भी आज मैंने निर्णय किया की किसी भी तरह की भ्रम की स्थिति ख़त्म करने के लिए अब भविष्य में मेरे इस चिट्ठे का नाम होगा "रद्दी की टोकरी "।

अब ऐसा समझिए न कि, जैसे बच्चा घर में खेलते-कूदते एक नाम से जाना जाता है और फ़िर जब स्कूल जाने लायक हो जाता है तो उसे नया नाम मिल जाता है। मगर हां, इतना यकीन दिलाता हूँ कि ये बच्चा चाहे नाम बदल ले या शक्ल , रहे उतना ही खुराफाती और शरारती।

मुझे पुरी उम्मीद है कि जिस तरह आपने मेरे छोटे कबाड़खाने प्यार से सराहा उसी तरह आप मेरी इस रद्दी की टोकरी में भी अपनी नज़र और हाथ डाल कर जरूर गंदा करेंगे।

आपका छोटा कबाड़ी......

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्यारे अजय भाई

    कबाड़ी छोटे बड़े नहीं होते. आपका फ़ैसला सिर आंखों पर. बस आप अच्छा कबाड़ एकत्र करते रहें यही मेरी शुभकामना है.

    हमारे कबाड़ख़ाने पर आने का धन्यवाद.

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  2. नाम में क्या रख्खा है, आप तो जारी रहो. यह नाम भी बढ़िया है, वो तो खैर बढ़िया था ही. आपने स्वयं बदल कर एक अच्छी परम्परा स्थापित की है. साधुवाद.

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  3. नाम ये भी बहुत अच्छा है.
    आपने रख लिया वरना हम रखने वाले थे.
    और असल बात तो अशोक भाई ने कह दी है.
    बधाई.

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  4. aap teeno kaa bahut bahut dhanyavaad. ashok jee aapkaa aashirvaad mil gaya to saarthaktaa badh gayee.

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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