प्रचार खिडकी
रविवार, 29 जून 2008
रे माधो, तू देखना
रे माधो, तू देखना,
इक दिन ,
मैं इस चाँद का,
एक टुकडा तोड़ कर,
तेरे माटी के,
दिए में पिघ्लाउंगा॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
इन तारों को,
बुहार कर एक साथ,
रग्दुन्गा , तेरे आँगन में,
आतिशबाजी , करवाउंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
तू नहीं जायेगा,
पंचायत में हाजिरी देने,
तेरे दालान पर,
संसद का सत्र बुल्वाउंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
तेरे गेह्नु के बने ,
जो खाते हैं, रोटी,
ब्रैड-नॉन, भठूरे,
उन सबसे ,
तुझको मिलवाउंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
तेरी मुनिया को,
इस स्लेट-खड़ी के साथ ,
बड़े कोंवेंट में ,
पढवाउंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
जो इस जनम,
न हो सका , ये सब,
तो जब तक,
हो न सकेगा, ये सब,
हर बार , इक नया जनम,
लेकर आउंगा मैं॥
माधो , तू देखना एक दिन ऐसा जरूर होगा, क्यों होगा न ?
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रे मिट्टी के माधो,
जवाब देंहटाएंचल उठ
जाग जा सपने से
जो करना है
इसी जनम में कर।
हा…हा…सुन्दर कविता
bhut badiya. jari rhe.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया/
जवाब देंहटाएंaap sabkaa bahut bahut dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंaachi kavita hai lakin siddharth ji ki baat se main bhi sahmat hoon ki
जवाब देंहटाएंजो करना है
इसी जनम में कर।
next janam kisne dakha hai