प्रचार खिडकी

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

बुरा मान गए .......



दो घडी,
चांद से ,
गुफ़्तगू क्या कर ली,
सितारे बुरा मान गए ॥

कभी नकाबों में रहें,
कभी परदों में ,
कितनी ही कर ली कोशिश ,
आईने हर बार पहचान गए ॥

ये सोच कर कि,
जीत ही है जो ,
उस उस द्वेष की शुरूआत तो ,
हम खुद ही हार मान गए ॥

उन्हें जीतने की , 
कुछ आदत सी ऐसी पडी ,
वक्त बेवक्त वो , 
रार नई ठान गए ॥

हमने कहा कि , 
चलो अब परदा गिराएं ,
इसपर , वो सफ़ेद सी ,
हमपर चादर एक तान गए ॥

दोस्तों में दुश्मनी की ,
खबर , खबर न बने ,
बहुत की कोशिश हमने,
जाने फ़िर भी कैसे लोग जान गए ॥

बस आज कुछ और नहीं लिखा जाएगा .....हां ब्लोग्गिंग के वर्तमान हालातों पर फ़िर कुछ तल्ख लिखने जा रहा हूं ....उसे आप कुछ भी कभी भी पर पढ सकेंगे ..कुछ देर बाद ....॥

9 टिप्‍पणियां:

  1. जिसने बुरा माना वे भी पार गए

    जिन्‍होंने नहीं माना वे भी पार गए।

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  2. कभी नकाबों में रहें,कभी परदों में ,कितनी ही कर ली कोशिश ,आईने हर बार पहचान गए ॥
    आईनों का काम ही है पहचानना. हमें नकाब बदलना होगा

    जवाब देंहटाएं
  3. दो घडी,चांद से ,गुफ़्तगू क्या कर ली,सितारे बुरा मान गए ॥
    कभी नकाबों में रहें,कभी परदों में ,कितनी ही कर ली कोशिश ,आईने हर बार पहचान गए ॥
    क्या बात कह दी है………………॥बहुत ही सुन्दर्।

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  4. किसी तारणहार की जरूरत लगती है अब

    जवाब देंहटाएं
  5. ये तो बढिया है..कभी भी कभी भी के चक्कर लगाते हैं अब!

    जवाब देंहटाएं
  6. जो मान गए सो मान गए, जो जो गए बाद में वापस आना मान गए।

    जवाब देंहटाएं
  7. Kyun ji sitare bura kyun na manenge!?
    Badhiya rachna!
    Khaskar, doston mein dushmani ki khabar, khabar na bane! Bahut kee koshish hamne jane phir bhi kaise log jaan gaye!

    जवाब देंहटाएं
  8. दो घडी,
    चांद से ,
    गुफ़्तगू क्या कर ली,
    सितारे बुरा मान गए ॥
    ...bahut badhiya.

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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