मुहब्बत कर न सको तो , नफ़रत की ही ,
कम से कम ,इंतहा तो दिखाओ यारों ,॥
कर देना पैवस्त खंजर ,मेरी पीठ पर ही सही,
चलो इसी बहाने इक बार ,गले तो लगाओ यारों ,॥
मैं समझ लूंगा तुमको, आईना , या अपने जैसा ,
फ़ितरत छुपाने को, कोई ,नकाब तो लगाओ यारों ,॥
माना कि चलना मुझे नहीं आता ,गिरता हूं संभलता हूं अक्सर,
मगर मुझे गिराने को , यूं ,खुद को तो न गिराओ यारों ,॥
कितना ज़ाया किया , मुझे सोच कर कर वक्त -बेवक्त तुमने अपना ,
थोडा सा तो अपने साथ , खुद के लिए भी वक्त बिताओ यारों ॥
सुना है कि ,उन रास्तों की मंजिल नहीं है , फ़िक्र होती है ,
कहीं इतनी दूर न निकल जाओ,कि लौट के आ न पाओ यारों ॥
कम से कम ,इंतहा तो दिखाओ यारों ,॥
कर देना पैवस्त खंजर ,मेरी पीठ पर ही सही,
चलो इसी बहाने इक बार ,गले तो लगाओ यारों ,॥
मैं समझ लूंगा तुमको, आईना , या अपने जैसा ,
फ़ितरत छुपाने को, कोई ,नकाब तो लगाओ यारों ,॥
माना कि चलना मुझे नहीं आता ,गिरता हूं संभलता हूं अक्सर,
मगर मुझे गिराने को , यूं ,खुद को तो न गिराओ यारों ,॥
कितना ज़ाया किया , मुझे सोच कर कर वक्त -बेवक्त तुमने अपना ,
थोडा सा तो अपने साथ , खुद के लिए भी वक्त बिताओ यारों ॥
सुना है कि ,उन रास्तों की मंजिल नहीं है , फ़िक्र होती है ,
कहीं इतनी दूर न निकल जाओ,कि लौट के आ न पाओ यारों ॥
waah bahut khoob sir...ek jalti gazal pesh ki sir...
जवाब देंहटाएंवाह भई सुंदर
जवाब देंहटाएंमैं समझ लूंगा तुमको, आईना , या अपने जैसा ,
जवाब देंहटाएंफ़ितरत छुपाने को, कोई ,नकाब तो लगाओ यारों ,॥
बहुत खूब. तो अब गज़ल पर भी हाथ साफ़ किया जा रहा है भाई? अच्छा है.बहुत अच्छा.
माना कि चलना मुझे नहीं आता ,गिरता हूं संभलता हूं अक्सर,
जवाब देंहटाएंमगर मुझे गिराने को , यूं ,खुद को तो न गिराओ यारों ,॥
मन की कसक को बहुत खूबसूरती से लिखा है...
माना कि चलना मुझे नहीं आता ,गिरता हूं संभलता हूं अक्सर,
जवाब देंहटाएंमगर मुझे गिराने को , यूं ,खुद को तो न गिराओ यारों ,॥
कास इस भावना को थाली में छेद करने वाले समझ पाते!
और सारे मतभेद भूलकर इंसानियत के लिए एक हो जाते!!
मुहब्बत कर न सको तो , नफ़रत की ही ,
जवाब देंहटाएंकम से कम ,इंतहा तो दिखाओ यारों ॥
बहुत ही खूबसूरत, बेहतरीन रचना. बहुत खूब!
कोई हाथ भी न मिलाएगा,
जवाब देंहटाएंजो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिज़ाज का शहर है,
ज़रा फ़ासले से मिला करो...
-बशीर बद्र
जय हिंद...
कितना ज़ाया किया , मुझे सोच कर कर वक्त -बेवक्त तुमने अपना ,
जवाब देंहटाएंथोडा सा तो अपने साथ , खुद के लिए भी वक्त बिताओ यारों ॥ गज़ल के लहज़े मे भावनात्मक सुन्दर प्रस्तुति।
WAQY ME JABAR DAST DILI ARMAN
जवाब देंहटाएंBAHUT KHUB
बहुत बढ़िया अजय भाई एकदम सटीक चोट करी है ................तिलमिला गए होगे सब !!
जवाब देंहटाएंमैं समझ लूंगा तुमको, आईना , या अपने जैसा ,
जवाब देंहटाएंफ़ितरत छुपाने को, कोई ,नकाब तो लगाओ यारों ,॥
-बहुत खूब झा जी...क्या बात है!!
कहीं इतनी दूर न निकल जाओ,कि लौट के आ न पाओ यारों
जवाब देंहटाएंसामयिक पंक्ति
बहुत बढ़िया प्रयास है ।
जवाब देंहटाएंमैं समझ लूंगा तुमको, आईना , या अपने जैसा ,
जवाब देंहटाएंफ़ितरत छुपाने को, कोई ,नकाब तो लगाओ यारों ,॥
बहुत गहरी बात कह दी आप ने , बहुत अच्छी लगी आप की यह गजल... आदाब जनाब
बेनामी का नकाब क्या कम है?? क्या खूब लिखा है भैया..
जवाब देंहटाएंआज के ज़माने की सच्चाई को बयाँ करती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंपुरुष की आंख कपड़ा माफिक है मेरे जिस्म पर http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_9338.html मेरी नई पोस्ट प्रकाशित हो चुकी है। स्वागत है उनका भी जो मेरे तेवर से खफा हैं
जवाब देंहटाएंकर देना पैवस्त खंजर ,मेरी पीठ पर ही सही,
जवाब देंहटाएंचलो इसी बहाने इक बार ,गले तो लगाओ यारों ,॥
जो गले मिले हैं या मिलने को आतुर हैं
अर्ज है कि उन्हें तो बेवजह झूठलाओ यारों
@ पूर्व टिप्पणी
जवाब देंहटाएंसंशोधन
जो गले मिले हैं या मिलने को आतुर हैं
अर्ज है कि उन्हें तो बेवजह न झूठलाओ यारों
ग़ज़ब की शानदार पोस्ट....
जवाब देंहटाएंकहीं इतनी दूर न निकल जाओ,कि लौट के आ न पाओ यारों ॥
जवाब देंहटाएंVery nice !