प्रचार खिडकी

गुरुवार, 6 मई 2010

भारत में उठी यौन व्यवसाय पर एक बहस ( मेरा एक प्रकाशित आलेख )

दैनिक महामेधा दिल्ली में आज ही प्रकाशित आलेख जो "मुद्दा "
स्तंभ के अतंर्गत प्रकाशित हुआ है । अबकि बार आप बस एक
क्लिक करें छवि बडी ही नहीं बहुत बडी हो जाएगी ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. भारत में साधन और संसाधन की कोई कमी नहीं है ,कमी है तो बस उस साधन और संसाधन को ईमानदारी से लागू करने और उसकी निगरानी करने की / आज लाखों रुपया महिना तनख्वाह पाने वाला सरकारी अधिकारी भी आम लोगों की कल्याणकारी योजनाओं का पैसा निगल रहा है ,मंत्री गरीबों की रोटी खा रहा है ,ऐसे में लोग ऐसे गंदे धंधें से अपना पेट भर ,अपनी जिंदगी को बचा रहें हैं /

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  2. एक कहावत है धन्दा है पर गंदा है यह .
    लोग यह नहीं देखना चाहते की आखिर यह धन्दा है क्यों? कहा जाता है की यह विश्व का सबसे पुराना व्यवसाय है . तो सबसे पुराने देश में इसके लिए कोई सही कानून क्यो नहीं .
    ईद देश में कोई कानून ठीक से काम नहीं करसकता जब तक सरकारों में अः इच्छा शक्ति न हो . सरकारे हम बनाते हैं लेकिन हमें तोड़ने का अधिकार भी हमने नेताओं को दे दिया है .

    सूप्रीम कोर्ट भी दिग्भ्रमित लगता है . एक ही अवस्था , यौन संबंध को दो नजरों से देखता है .
    लिव इन रिलेसनशिप और यौन व्यवसाय

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  3. यदि किसी वृहद सोची समझी परियोजना के तहत यह कदम उठाया जाये जिसका गोल पहले से फिक्स हो तो कोई बुराई नहीं कि इस पेशे को कानूनी मान्यता दे दी जाये किन्तु बिना किसी कल्याणकारी परियोजना के एक और मान्यताकरण पुनः भ्रष्ट्राचार का एक और दरवाजा खोलने जैसी बात है.

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  4. @-आज लाखों रुपया महिना तनख्वाह पाने वाला सरकारी अधिकारी भी आम लोगों की कल्याणकारी योजनाओं का पैसा निगल रहा है ,मंत्री गरीबों की रोटी खा रहा है ,ऐसे में लोग ऐसे गंदे धंधें से अपना पेट भर ,अपनी जिंदगी को बचा रहें हैं

    Sahi farmaya..

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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