रे माधो, तू देखना,
इक दिन ,
मैं इस चाँद का,
एक टुकडा तोड़ कर,
तेरे माटी के,
दिए में पिघलाऊंगा ॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
इन तारों को,
बुहार कर एक साथ,
रगडूंगा, तेरे आँगन में,
आतिशबाजी , करवाउंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
तू नहीं जायेगा,
पंचायत में हाजिरी देने,
तेरे दालान पर,
संसद का सत्र बुलवाऊंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
तेरे गेहूं के बने ,
जो खाते हैं, रोटी,
ब्रैड-नॉन, भठूरे,
उन सबसे ,
तुझको मिलवाउंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
तेरी मुनिया को,
इस स्लेट-खड़ी के साथ ,
बड़े कोन्वेन्ट में ,
पढवाउंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
मुझे कोई जाने न जाने ,
तुझे पहचान लेंगे सब,
कुछ ऐसा ही कर जाऊंगा मैं .....
और एक दिन ऐसा होकर रहेगा ...मुझे विश्वास है कि भारत के गांव में बसा ..माधव ही आखिरी विकल्प होगा ........
इक दिन ,
मैं इस चाँद का,
एक टुकडा तोड़ कर,
तेरे माटी के,
दिए में पिघलाऊंगा ॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
इन तारों को,
बुहार कर एक साथ,
रगडूंगा, तेरे आँगन में,
आतिशबाजी , करवाउंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
तू नहीं जायेगा,
पंचायत में हाजिरी देने,
तेरे दालान पर,
संसद का सत्र बुलवाऊंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
तेरे गेहूं के बने ,
जो खाते हैं, रोटी,
ब्रैड-नॉन, भठूरे,
उन सबसे ,
तुझको मिलवाउंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
तेरी मुनिया को,
इस स्लेट-खड़ी के साथ ,
बड़े कोन्वेन्ट में ,
पढवाउंगा मैं॥
रे माधो, तू देखना,
इक दिन,
मुझे कोई जाने न जाने ,
तुझे पहचान लेंगे सब,
कुछ ऐसा ही कर जाऊंगा मैं .....
और एक दिन ऐसा होकर रहेगा ...मुझे विश्वास है कि भारत के गांव में बसा ..माधव ही आखिरी विकल्प होगा ........
फिर माधो का गांव नहीं रहेगा
जवाब देंहटाएंमाधो गांव में नहीं रहेगा
माधो का शहर होगा
माधो शहर में बसर करेगा
और
संसद भवन बनेगा आशियाना।
सुन माधो सुन
चांद का टुकड़ा तोड़ा
तो मिलेगी अब तो बरफ खूब सारी।
रे माधो, तू देखना,
जवाब देंहटाएंइक दिन,
मुझे कोई जाने न जाने ,
तुझे पहचान लेंगे सब,
कुछ ऐसा ही कर जाऊंगा मैं .....
क्या संकल्प है. क्या अन्दाज है ---
excellent poem and what a wish hope it comes thru
जवाब देंहटाएंरे माधो, तू देखना,
जवाब देंहटाएंइक दिन,
मुझे कोई जाने न जाने ,
तुझे पहचान लेंगे सब,
कुछ ऐसा ही कर जाऊंगा मैं .....
आमीन ईश्वर आपकी ये इच्छा ज़रूर पूरी करे. अन्तिम पंक्तियों में तो कमाल ही कर दिया. बधाई.
आत्मविश्वास से भरी एक बढ़िया रचना...
जवाब देंहटाएंकविता तो बहुत लाजवाब लगी अजय भईया , और हाँ आप बहुत खूबसूरत लग रहें है हल जोतते हुए ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...दुआएँ हैं ऐसा जल्द हो!!
जवाब देंहटाएंअंत मे पता चला कि यह तो अपना गाँव का माधव है मुझे लगा कि यह सीधे ईश्वर से सम्वाद हो रहा है । बहरहाल यह सब करने के लिये आपको हमारी मदद की ज़रूरत तो पड़ेगी ही ..हाँ हम जनता हैं भई और बगैर जनता क्रांति कहाँ सम्भव है । इस कविता के सामाजिक सरोकार सर्वोत्तम है ।
जवाब देंहटाएंआश जगाती रचना ।
जवाब देंहटाएंकविता तो बहुत लाजवाब लगी अजय भईया
जवाब देंहटाएंमाधव ही आखिरी विकल्प होगा ...
जवाब देंहटाएंउम्दा सोच ...बढ़िया कविता ....!!
aapka sapna sabka sapna bane aur duaa kabool ho..........behad sundar rachna.
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