प्रचार खिडकी
मंगलवार, 2 मार्च 2010
दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित मेरा एक व्यंग्य (नए गरीबों की खोज )
( व्यंग्य को पढने के लिए उस पर चटका लगाएं और अपनी सुविधानुसार बडा करने के लिए ctrl ++ का प्रयोग करें )
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एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
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बधाई हो अजय भईया बधाई ।
जवाब देंहटाएंbdhai.
जवाब देंहटाएंपॉसीबल नहीं है स्कैन इमेज को पढ़ना। टाइप किया हुआ ही लगा दीजिए अजय भाई। अथवा प्रीव्यू करके स्कैन इमेज जमाया कीजिए। पाबला जी ने बतलाई थी युक्ति। बहुत जानदार है।
जवाब देंहटाएंबधाई हो जी, क्या यह समाचार पत्र वाले कुछ मेहनाता भी देते है? जिस पर आप का हक बनता है.
जवाब देंहटाएंवाह जी.बहुत बढ़िया..अखबार पर दिनांक २००८ की है क्या?
जवाब देंहटाएंअविनाश भाई चटका लगाने के बाद छवि काफ़ी बडी खुल रही है और धुंधले प्रिंट होने के बावजूद पढी जा रही है ..बांकी उस कतरन का ही कसूर है पुरानी थी ...
जवाब देंहटाएंहां राज भाई , समाचार पत्र में छपे हुए आलेख/रचनाओं का पारिश्रमिक तो मिलता ही है ...
अजय कुमार झा
व्यंग्य बढ़िया है .. हम भी गरीब है भाई ।
जवाब देंहटाएंबधाई हो.
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