प्रचार खिडकी

मंगलवार, 9 मार्च 2010

आज महिलाओं को आरक्षण नहीं इंदिरा गांधी , किरन बेदी, और कल्पना चावला की जरूरत है




एक शताब्दी पहले महिला को सश्क्त करने के लिए अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की परंपरा की शुरूआत शायद इस वजह से ही हुई होगी कि जब एक शताब्दी के बाद मुड के देखेंगे और पाएंगे कि महिलाओं की स्थिति कितनी बदली इन सौ सालों में तो वो संघर्ष का इतिहास गौरवमयी और उपलब्धिपूर्ण होगा । आज रुक कर यदि सरसरी तौर पर देखा जाए तो बदलाव तो यकीनन आया है और ये परिवर्तन दिख भी रहा है । इसे सकारात्मक व नकारात्मक तर्कों पर तौलने वालों को किनारे करके इतना तो सीधा सीधा माना जा सकता है कि महिलाओं ने परिवार ,समाज ,देश , और पूरे विश्व में बहुत सारी जद्दोज़हद के बाद अपना एक मुकाम तो हासिल किया ही है । और ये सफ़र अभी जारी है , कहें कि रफ़्तार भी अब पहले से ज्यादा तेज़ है । मगर जिन शाश्वत समस्याओं पर नज़रें बार बार आकर अटक जाती हैं उनमें से पहली है समाज की नारियों के प्रति नहीं बदलने वाली मानसिकता, महिलाओं पर होने वाला दैहिक और मानसिक अत्याचार ,उनके साथ अब भी किया जा रहा दोयम दर्ज़े का व्यवहार । और ऐसा सिर्फ़ अविकसित या पिछडे देश/समाज की कहानी नहीं है बल्कि विकसित देशों में भी यही हाल है ।

अमरीका जैसे सबसे विकसित देश में जहां अब तक एक भी महिला राष्ट्राध्यक्ष नहीं बन पाई है , तो वहीं भारत में तो अभी राजनीतिक जगत में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण की बैसाखी का सहारा लेना भी गंवारा नहीं है सबको । जाने कितनी ही बार महिलाओं के लिए तैंतीस प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए विधेयक को संसद के पटल पर रखा गया है और हर बार उसका हश्र कुछ ऐसा ही हुआ है जैसा कि इस बार हुआ है । कारण स्पष्ट है कि बांकी का बचा ६७ प्रतिशत उन तैंतीस प्रतिशत के प्रभाव और परिणाम से पहले से ही डरा हुआ सा लगता है । लेकिन क्या सचमुच ही आज महिलाओं को किसी आरक्षण की बैसाखी की जरूरत है आगे बढने के लिए , अपना अधिकार, अपना ओहदा, अपना अस्तित्व तलाशने के लिए । आज यदि भारत में महिलाओं की स्थिति को देखें तो कतई नहीं , बिल्कुल भी नहीं । जिस देश में दशकों पहले देश की कमान इंदिरा गांधी जैसी विश्वस्तरीय नेत्री ने संभाल रखी हो , (यहां ये उल्लेख करना शायद ठीक होगा कि आज जिस विधेयक को पारित करने के लिए सभी इतनी एडी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं यदि आज इंदिरा गांधी जीवित होतीं तो निश्चित ही इतना समय नहीं लगता ), जहां कानून, खेल, अभिनय, कला , समाज, राजनीति ...आदि हर क्षेत्र में नारी शक्ति का बोलबाला और धाक है ,ऐसे में उसे किसी भी बैसाखी की जरूरत नहीं है ।


आज यदि महिलाओं को किसी बात की जरूरत है तो वो सिर्फ़ इस बात की कि हर प्रांत, हर शहर, हर गांव,हर कस्बे, हर गली कूचे, हर परिवार ,में इंदिरा गांधी, लक्ष्मी बाई, किरन बेदी, कल्पना चावला, सायना मिर्ज़ा, नज्मा हेपतुल्लाह, लता मंगेशकर, शिवानी, और इन जैसी हजारों महिलाएं को बनाया जा सके । यदि इन तमाम नारियों को नारी शक्ति बनने के लिए किसी आरक्षण नामके बैसाखी की जरूरत नहीं पडी तो आगे भी नहीं पडेगी । आज जरूरत सिर्फ़ और सिर्फ़ इस बात की है नारी अपने भीतर की शक्ति को पहचाने , न सिर्फ़ पहचाने बल्कि उसे पूरे वेग से बाहर आने दे । बिना किसी की परवाह किए , बिना किसी बंदिश के , अब समय आ गया है कि आधी दुनिया कहलाने वाली शक्ति , विश्च की संचालक शक्ति बने । और ऐसा तो एक दिन होकर ही रहेगा ॥

18 टिप्‍पणियां:

  1. इंदिरा गांधी,किरण बेदी और कल्पना चावला में प्रतिभा,लगन,जीवट साहस सब कुछ था....और जिस से वे उस मकाम तक पहुँच पायीं...पर उतनी ही प्रतिभा,लगन.साहस...देश की सैकड़ों लड़कियों में हैं...क्यूँ उनकी प्रतिभा दबी,छुपी हुई है??.इन महिलाओं को एक जरिया मिला...अच्छी शिक्षा..पिता का प्रोत्साहन मिला...जिस से वे निखर कर सामने आयीं....अपने बल पर भी स्त्रियाँ आगे बढेंगी...बढ़ भी रही हैं..पर उनकी रफ़्तार बहुत धीमी है....आरक्षण से गति में थोड़ी...तीव्रता आ जाती,बस ..

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  2. रश्मि जी , आप शायद इस आरक्षण को मूल आरक्षण मान बैठी हैं , ये आरक्षण राजनीतिक है , सीटों वाला , इससे साधारण महिलाओं के विकास में कितनी तेजी आएगी पता नहीं और यकीनन मैं इसके विरोध में भी नहीं हूं ..मगर इसे लेकर जो नाटक बार बार किया जा रहा है उससे खिन्न जरूर हूं , प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद
    अजय कुमार झा

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  3. और हां जहां तक मेरी जानकारी है कि आप जिस आरक्षण की बात कर रही हैं यानि नौकरी आदि में वो तो पहले से ही है शायद तीन प्रतिशत मात्र
    अजय कुमार झा

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  4. ajay ji
    aapne sahi kaha ki mahilaon ki aage badhne ke liye kisi baisakhi ki jaroorat nhi hai lekin insaani soch ko badlane aur samaan adhikar paane ki jaroorat to hai abhi badlaav sirf kuch pratishat hi huaa hai aur sahi mayano mein to yun samajhiye shuruaati daur main hain hum badlaave ke .........jis din sab aisa sochne lagenge to phir kahin samasya dikhayi hi nhi degi.aarakshan to is prakriya ka ek hissa bhar hai baki to insani mansikta jis din badal jayegi usi din se mahilayein apna varchasva kayam kar payengi aur is bhagidari mein sabko sath dena hoga phir chahe wo stri ho ya purush.

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  5. @ रश्मि रविजा जी

    अपने बल पर भी स्त्रियाँ आगे बढेंगी...बढ़ भी रही हैं..पर उनकी रफ़्तार बहुत धीमी है....आरक्षण से गति में थोड़ी...तीव्रता आ जाती,बस


    बेहद हास्यासपद , अब भविष्य में लड़किया बिना किसी के मदद के अपने बल पर पैदा होंगी ।

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  6. बिना किसी की परवाह किए , बिना किसी बंदिश के , अब समय आ गया है कि आधी दुनिया कहलाने वाली शक्ति , विश्च की संचालक शक्ति बने । और ऐसा तो एक दिन होकर ही रहेगा ॥
    सत्‍य वचन !!

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  7. अपने बल पर भी स्त्रियाँ आगे बढेंगी...बढ़ भी रही हैं..पर उनकी रफ़्तार बहुत धीमी है....आरक्षण से गति में थोड़ी...तीव्रता आ जाती,बस

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  8. अजय जी,इतनी बेवकूफ नहीं हूँ,मैं...अखबार पढ़ती हूँ...किस आरक्षण की बात हो रही है,पता है,मुझे ....मेरा ये मानना है कि एक महिला भी आगे आती है...तो महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार करने की कोशिश करती है...और धीरे धीरे स्थितियों में बदलाव आएगा...और कल जो कुछ हंगामा संसद में हुआ इस से तो सबका मन ही खिन्न है...
    और मैं नौकरी के आरक्षण की बात नहीं कर रही थी....एक बार लडकियां पढ़ लिख जाती हैं...तो किसी भी कॉम्पिटिशन में वे वैसे ही पुरुषों से पीछे नहीं रहतीं...बात grass root से बदलाव की है

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  9. जिस मै कबलियत है, जो इस योग्या है, वो नारी अपने बलबुते पर आगे बढेगी, उसे किसी भी नारी आरक्षण की बेशाकी की जरुरत नही, यह नारी आरक्षण का शोर जो आज कल हमारे नेताओ ने मचा रखा है, बस आम जनता का ध्यान अन्य बातो से बांटने के लिये लगा रखा है,अरे इस नारी आरक्षण से बडा मुद्दा तो महंगाई का है, पहले उस पर बात करो, आंताक वाद का है उस पर बात करो, लेकिन नही यह नया झूण झुणा हमे दिखायेगे, जिस के पास होने से किसी को लाभ नही, ओर ना पास हो तो भी किसी को नुकसान नही, लेकिन इन दोनो स्तिथियो मै लाभ इन नेताओ को है, फ़िर से यह पांच इस नारी आरक्षण के नाम से जीत कर हमारा खुन पीने आ जायेगे, ओर हम भेडो की तरह से इस नारी आरक्षण के पीछे पीछे भाग रहे है बिना सोचे बिना समझे..... क्या मिलेगा इस के पास होने पर महिलाओ को जो अब नही मिल रहा????

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  10. नारी आरक्षण की बेशाकी (बेशाखी) पढे

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  11. आरक्षण का अर्थ बैसाखी नहीं है । इतिहास ने स्त्री दलित जैसे समुदायों के साथ न्याय नहीं किया है । एक लम्बी परम्परा उनके शोषण की रही है । इसके लिये सामाजिक व राजनैतिक सोच दोनो ही ज़िम्मेदार हैं । मूलत: यह व्यवस्था संविधान में ही होनी चाहिये थी लेकिन ऐसा न होने की कई वज़हे रहीं हैं । स्त्री या दलित में किसी के महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लेने का यह अर्थ कदापि नहीं होता के वे उस समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं ।शिक्षा, नौकरी अदि में आरक्षण इस प्रक्रिया की प्रथम सीढ़ी है लेकिन वह भी पर्याप्त नहीं है ।

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  12. @ आदरणीय रश्मि जी,

    मेरी समझ में ये नहीं आता कि प्रतिक्रिया देते समय क्या इतनी तल्खी और उग्रता जरूरी है । मेरी किस बात से लगा कि किसी को बेवकूफ़ कहा या समझा गया है । अच्छी बात है कि आप अखबार पढती हैं , शायद ये मेरी ही भूल रही होगी जो मैं नासमझ ठीक से समझ नहीं पाया , और मेरे आलेख का उद्देश्य मात्र और मात्र इतना बताना है कि नारी ........एक आम नारी को आज इस आरक्ष्ण की कितनी जरूरत है और क्या सचमुच ही उसे इससे फ़ायदा पहुंचने वाला है , आखिर इस आरक्षण के बाद कितनी साधारण महिलाएं राजनीति में पहुंचेंगी ..और उनको ढाल बना के क्या क्या किया जाएगा या जा रहा है सबको पता है ...और बार बार मैं इस बात को कह रह हूं कि इन सबके बावजूद मैं इस आरक्षण के विरोध में नहीं हूं .....मगर जैसा कि कह चुका हूं कि उससे ज्यादा जरूरी है कि हर घर में एक इंदिरा गांधी, एक किरन बेदी ...और शायद एक रश्मि रवीजा हों तो ,,सब अपने आप दुरूस्त हो जाएगा ...लगता है इन दिनों नारी पुरूष विषय को लेकर लिखने का पर्याय कुछ और ही निकल जाता है ..उम्मीद है कि कम से कम अब तो मैं अपनी बात कह पाया हूं ठीक से ...

    अजय कुमार झा

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  13. कहीं भी, किसी भी तरह का आरक्षण, प्राकृतिक व्यवस्था के विरूद्ध है।

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  14. जिस मै कबलियत है, जो इस योग्या है, वो नारी अपने बलबुते पर आगे बढेगी, उसे किसी भी नारी आरक्षण की बेशाकी की जरुरत नही, यह नारी आरक्षण का शोर जो आज कल हमारे नेताओ ने मचा रखा है,

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  15. जिस मै कबलियत है, जो इस योग्या है, वो नारी अपने बलबुते पर आगे बढेगी, उसे किसी भी नारी आरक्षण की बेशाकी की जरुरत नही, यह नारी आरक्षण का शोर जो आज कल हमारे नेताओ ने मचा रखा है, बस आम जनता का ध्यान अन्य बातो से बांटने के लिये लगा रखा है,अरे इस नारी आरक्षण से बडा मुद्दा तो महंगाई का है,

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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