प्रचार खिडकी

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

सफ़ेद चेहरे ...एक कहानी या जाने हकीकत थी ......


कांति और नुपुर , बिल्कुल उस तरह से थी जैसे कि, दो बहने हों । उनकी ये दोस्ती कितनी पुरानी थी इस बात से ज्यादा ये बात जानने में मज़ा आ सकता है कि उनकी दोस्ती कैसे हुई। दरअसल ये उनके कोल्लेज के दिनों की बात थी, दोनों एक ही बस में चढ़ कर एक ही कालेज और एक ही क्लास में जाती थी, मगर उनमें शायद कभी भी ऐसी दोस्ती न होती यदि , उस दिन वो घटना ना हुई होती। जब वे अपना क्लास ख़त्म करके बस में चढी तो रोज की तरह बस ठसाठस भरी हुई थी। वे दोनों भी बिल्कुल आस पास खडी हो गईं थी। नुपुर जो कि हमेशा से बेहद संकोची और डरने वाली लडकी थी , उसे अचानक लगा कि किसी ने पीछे चिकोटी काटी है, वो हमेशा की तरह कस्मसाई और आगे बढ़ने की सोचने लगी। मगर आगे भी भीड़ थी, तभी अचानक इससे पहले कि वो कुछ और सोच या कर पाती, चटाक की एक तेज़ आवाज़ उसके कानो में गूंजी। उसने मुड़ कर देखा , साथ खड़ी लडकी ने बिल्कुल पास खड़े लड़के के कालर पकड़ कर उसे भला बुरा कह रही थी। इसके बाद का काम भीड़ ने कर दिया, न किसी ने कुछ पूछा और न कहा। नुपुर की कांति से यहीं से दोस्ती की शुरूआत हुई थी। जब उसे कांति से पूछा था कि क्या ये सब करते हुए उसे डर नहीं लगा, उसने बताया था कि वो एक बड़े घर की लडकी है, और उसका माहौल बहुत अलग है जिसमें डर वर की कोई गुंजाईश नहीं है। वो तो कार में अपनी जिद्द की वजह से नहीं आती है। इसके बाद तो दोनों जैसे एक ही घर में पैदा हुई दो बेटियाँ हों।


आज नुपुर बेहद उदास थी, ऐसी ही उदासी उसके चेहरे पर तब भी थी , जब वो नौकरी के लिए भटक रही थी। कांति ने लाख कहा था कि वो अपने पापा के कहने पर उसे किसी अच्छी जगह पर काम दिलवा सकती है, या चाह तो उसे अपने पापा के यहाँ ही कोई अच्छी नौकरी दिलवा सकती है, मगर नुपुर अब भी उन्हें पुराने खालों की लडकी थी इसलिए बड़ी विनम्रता से उसे टाल गयी.मगर फ़िर उसे जब एक जगह रीसेप्स्निष्ट की नौकरी मिल गयी थी तो वो कितना खुश थी, फ़िर एक हफ्ते बाद ही तो उसने बताया था कि सर ने उसे अपना सेक्रेटरी बनाने का को कहा है.मगर आज कुछ जरूर गड़बड़ थी। कांति उसका फक्क चेहरा देख कर ही समझ गयी थी। बहुत कुरेदने पर पता चला कि वही पुरानी बात उसके बॉस ने उससे बत्तमीजी करने की कोशिश की थी। बस कांति भड़क गयी, पहले तो उसने नुपुर को ही खूब भला बुरा कहा, फ़िर लाख न न करने के बाद भी उसे इस बात के लिए राजी कर लिया कि कल वो भी नुपुर के साथ जाकर उस बॉस की अक्ल ठिकाने लगा कर आयेगी।

अगले दिन नुपुर ने बहुत कोशिश की , कि उसकी तबियत ख़राब है , वो बात आगे नहीं बढाना चाहती , या वो और कहीं नौकरी कर लेगी। मगर कांति उसे सबक सिखाने पर आमादा थी। सो दोनों चल पड़े। तू, कुछ नहीं कहेगी, चुपचाप खड़े होकर तमाशा देखना, आज मैं उसका कैसा बैंड बजाती हूँ, कांति ने उसे कहा।

गाडी जहाँ रोकने के लिए नुपुर ने कहा, पहले तो कांति थोडा चौंकी, फ़िर कुछ सोच कर चुप हो गयी। इसके बाद दोनों उस बिल्डिंग में दाखिल हुए, अब कांति के चेहरे पर एक अजीब सा खुरदुरापन आ गया था मगर अन्दर ही अन्दर उसका दिल भी धाड़ धाड़ बज रहा था। नुपुर के साथ साथ वो भी सीधे बिना खटखटाए बॉस के कमरे में दाखिल हो गए। नुपुर को ना जाने कांति के साथ ने कहाँ से हिम्मत दे दी, ' देख नुपुर यही है वो, उसे सामने खड़े व्यक्ति की तरफ़ इशारा किया।

"पापा , आप ," कांति के मुंह से निकला।

सबके चेहरे सफ़ेद पड़ चुके थे, कारण अलग थे , मगर सफेदी एक जैसी थी......


14 टिप्‍पणियां:

  1. चेहरे तो हमारे सफेद हो गये कहानी के अंत को पढकर ------
    समाज के इस विकृत स्वरूप को जो सफेदी के आवरण में है देखकर.
    बहुत सुन्दर और हिला देने वाली कहानी

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  2. ओह!! झकझोर दिया कहानी के अंत ने....

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  3. बहुत शानदार लघुकथा। सीधे चोट करती हुई।

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  4. bahut hi satik story hai aaj ke time ke hisab se.........

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  5. परदे में रहने दो...पर्दा जो उठा गया तो भूचाल...भूकंप...तूफ़ान सब कुछ एक साथ आ जाएगा...
    शानदार लघुकथा

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  6. है तो जोरदार मगर क्लीश ही !

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  7. धन्यवाद अरविंद जी ,
    मैंने भी ऐसी एक घटना सुनी थी ..जिसे कहानी की शक्ल देने का मन किया ....शुक्रिया ,आगे इस बात का ध्यान रखूंगा ,कि चाहे used हो मगर over used न हो ..हा हा हा

    अजय कुमार झा

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  8. कहानियाँ भी हकीकत से प्रेरित होती है । अच्छी लघुकथा ।

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  9. Hila dene wala sach hai ye.. vaise ab to kai logon ke liye ye bhi koi nayi baat nahin..

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  10. अंधकार को दूर करने के लिए चिराग लेकर घुमते लोगों के घर में ही अंधेरे होते हैं .. बिल्‍कुल सच्‍ची कहानी !!

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  11. एक आईना दिखाती कहानी, काश हम दुसरो की मां बेटी पर गलत नजर डालने से पहले, उन की तुलाना अपनी मां बेटी से करे.

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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